October 3, 2024 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण — उमासंहिता — अध्याय 16 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण उमासंहिता सोलहवाँ अध्याय विभिन्न पापकर्मोंसे प्राप्त होनेवाले नरकोंका वर्णन और शिव – नाम – स्मरणकी महिमा सनत्कुमार बोले – हे मुनिश्रेष्ठ ! उन लोकोंके ऊपर स्थित नरकोंको मुझसे सुनिये, जहाँपर पापीजन दुःख भोगते हैं ॥ १ ॥ रौरव, शूकर, रोध, ताल, विवसन या विशसन, महाज्वाल, तप्तकुम्भ, लवण, विलोहित, पूयवहा वैतरणी, कृमिश, कृमिभोजन, घोर असिपत्रवन, दारुण लालाभक्ष, पूयवह, वह्निज्वाल, अधः शिरा, संदंश, कालसूत्र, तम, अवीचिरोधन, श्वभोजन, रुष्ट, महारौरव, शाल्मली इत्यादि बहुतसे पीड़ादायक नरक हैं ॥ २-५ ॥ हे व्यासजी! पापकर्ममें निरत जो पुरुष उनमें दुःख भोगते हैं, मैं उनका वर्णन क्रमशः कर रहा हूँ, आप सावधान होकर सुनिये ॥ ६ ॥ महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥ जो मनुष्य ब्राह्मण, देवता एवं गौओंके पक्षको छोड़कर अन्यत्र झूठी गवाही करता है और सदा मिथ्याभाषण करता है, वह रौरव नरकमें जाता है ॥ ७ ॥ हे व्यासजी ! भ्रूणहत्या करनेवाला, स्वर्ण चुरानेवाला, गायोंको रोकनेवाला, विश्वासघाती, सुरापान करनेवाला, ब्राह्मणका वध करनेवाला, दूसरोंके द्रव्यको चुरानेवाला तथा इनका साथ देनेवाला और गुरु, माता, गौ तथा कन्याका वध करनेवाला मरनेपर तप्तकुम्भ नामक नरकमें जाता है ॥ ८-९ ॥ साध्वी स्त्रीको बेचनेवाला, [ अधिक] ब्याज लेनेवाला, व्यभिचारी अथवा केशका विक्रय करनेवाला और जो अपने भक्तका त्याग कर देता है – ये सब तप्तलोह नामक नरकमें दुःख भोगते हैं ॥ १० ॥ हे द्विज ! जो अधम मनुष्य गुरुओंका अपमान करनेवाला, दुर्वचन कहनेवाला, वेदनिन्दक, वेदोंको बेचनेवाला तथा अगम्या स्त्रीके साथ संसर्ग करनेवाला है, वह अन्तमें सप्तबल नामक नरकमें जाता है ॥ १११/२ ॥ जो चोर, गोहत्यारा, पतित, मर्यादाको तोड़नेवाला, देवता-ब्राह्मण-पितरोंसे द्वेष करनेवाला, रत्नोंको दूषित करनेवाला, दूषित यज्ञ करनेवाला है, वह पापी कृमिभक्ष नरकमें जाता है और वहाँ कीड़ोंका भोजन करता है॥ १२-१३ ॥ जो नराधम पितरों एवं देवताओंको अर्पण किये बिना खाता है एवं जो शास्त्रोंमें कुतर्क करता है, वह मूर्ख लालाभक्ष नामक नरकमें जाता है ॥ १४ ॥ जो द्विज अन्त्यजसे सेवा कराता है, नीचोंसे प्रतिग्रह ग्रहण करता है, यज्ञके अधिकारियोंसे यज्ञ कराता है एवं अभक्ष्य वस्तुओंका भक्षण करता है और जो सोमका विक्रय करता है – ये सब रुधिरौघ नामक नरकमें जाते हैं । मधुका हरण करनेवाला तथा ग्रामका ध्वंस करनेवाला घोर वैतरणी नदीमें जाता है ॥ १५-१६ ॥ जो नव यौवनसे मदमत्त होकर मर्यादाका उल्लंघन करते हैं, अपवित्र रहते हैं और कुलटा स्त्रियोंसे जीविका चलाते हैं, वे कृमि नामक नरकमें जाते हैं ॥ १७ ॥ जो व्यर्थमें वृक्षोंको काटता है, वह असिपत्रवनको जाता है। चाकूसे काटकर जीविका – यापन करनेवाले अर्थात् मांसविक्रयी तथा मृगोंका वध करनेवाले वह्निज्वाल नामक नरकमें जाते हैं ॥ १८ ॥ हे द्विज ! भ्रष्टाचार करनेवाला ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य उसी वह्निज्वाल नरकमें जाते हैं और आग लगानेवाला श्वपाक नामक नरकमें जाता है ॥ १९ ॥ जो व्रतका लोप करनेवाले हैं और जो अपने आश्रमसे च्युत हो गये हैं, वे अत्यन्त भयानक संदेश नामक नरकमें जाते हैं ॥ २० ॥ जो ब्रह्मचारी मनुष्य स्वप्नमें वीर्य स्खलित करते हैं तथा जो गृहस्थ अपने पुत्रोंको नहीं पढ़ाते हैं, वे श्वभोजन नरकमें गिरते हैं । ये सब तथा अन्य भी सैकड़ों, हजारों नरक हैं, जिनमें पाप करनेवाले यातना भोगते हुए पड़े रहते हैं ॥ २१-२२ ॥ इसी प्रकार ये सभी तथा अन्य भी हजारों पाप हैं, जिन्हें नरकोंमें पड़े हुए मनुष्य भोगते रहते हैं ॥ २३ ॥ जो मनुष्य मन, वचन तथा कर्मसे वर्णाश्रमधर्मके विपरीत आचरण करते हैं, वे नरकमें गिरते हैं ॥ २४ ॥ देवगण उन नारकी प्राणियोंको नीचेकी ओर शिर किये हुए देखते हैं और वे भी सभी देवताओंको नीचेकी ओर मुख किये हुए देखते रहते हैं ॥ २५ ॥ [पापकर्मा मनुष्य] क्रमशः उन्नति करते हुए स्थावर, कृमि, जलचर, पक्षी, पशु, मनुष्य, धर्मात्मा, देवता तथा मुमुक्षु होते हैं और अन्तमें मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं । जितने प्राणी स्वर्गमें हैं, उतने ही नरकमें भी स्थित हैं । प्रायश्चित्तसे विमुख पापी नरकको जाता है ॥ २६-२७ ॥ हे व्यास ! स्वायम्भुव मनुने बड़े पापोंके लिये महान् प्रायश्चित्त तथा अल्प पापोंके लिये अल्प प्रायश्चित्त कहे हैं। उन सभी पापोंके जो प्रायश्चित्त कर्म कहे गये हैं, उनमें विशेष रूपसे शिवजीका नामस्मरणरूप प्रायश्चित्त सबसे श्रेष्ठ है ॥ २८-२९ ॥ जिस पुरुषके चित्तमें पापकर्म करनेके अनन्तर पश्चात्ताप होता है, उसके लिये तो एकमात्र शिवजीका स्मरण ही सर्वोत्तम प्रायश्चित्त है ॥ ३० ॥ प्रातः, रात्रि, सन्ध्या तथा मध्याह्नमें शिवका स्मरण करनेवाला मनुष्य पापरहित हो जाता है और शिवलोकको प्राप्त करता है। उन उमापति शम्भु शिवके स्मरणमात्रसे ही वह सभी प्रकारके दुःखोंसे मुक्त हो जाता है और स्वर्ग अथवा मोक्ष प्राप्त करता है ॥ ३१-३२ ॥ हे मुनिसत्तम! [ भगवान् शंकरके स्मरणके प्रभावसे] इस त्रिलोकीमें कहीं भी जप, होम, अर्चन आदि सत्कर्मोंमें विघ्न नहीं होता तथा [ स्मरणकर्ताके चित्तमें] पाप [ – का संक्रमण भी ] नहीं होता ॥ ३३ ॥ हे विप्रेन्द्र ! जिसकी बुद्धि महादेवमें लगी हो, उसे जप, होम एवं पूजा आदि करनेसे जो पुण्य मिलता है, वह पुण्य प्राप्त हो जाता है एवं देवेन्द्रत्व आदिका फल प्राप्त हो जाता है। हे मुने ! जो पुरुष दिन-रात भक्तिपूर्वक शिवका स्मरण करता है, वह समस्त पापोंसे रहित हो जाता है और इसीलिये नरकमें नहीं पड़ता है ॥ ३४-३५ ॥ हे द्विजश्रेष्ठ ! नरक एवं स्वर्ग नामका तात्पर्य पाप और पुण्य है, जिनमें नरक दुःखके लिये और स्वर्ग सुख तथा समृद्धिके लिये होता है ॥ ३६ ॥ वही एक वस्तु प्रसन्नताके लिये होकर बादमें दुःखका कारण बन जाती है । इसलिये कोई भी वस्तु न दुःख देनेवाली है और न सुख देनेवाली ॥ ३७ ॥ सुख-दुःखका उपलक्षणरूप यह तो केवल मनका परिणाममात्र है। ज्ञान ही परब्रह्म है, वह ज्ञान ही तत्त्वका बोध कराता है ॥ ३८ ॥ हे मुने! यह सम्पूर्ण चराचर जगत् ज्ञानस्वरूप है, वस्तुतः परतत्त्वके विज्ञानसे बढ़कर कुछ भी श्रेष्ठ पदार्थ नहीं है ॥ ३९ ॥ इस प्रकार मैंने सम्पूर्ण नरकोंका वर्णन कर दिया है, अब इसके बाद मैं भूमण्डलका वर्णन करूँगा ॥ ४० ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत पाँचवीं उमासंहितामें ब्रह्माण्डवर्णनमें नरकोद्धारवर्णन नामक सोलहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १६ ॥ Please follow and like us: Related