शिवमहापुराण — कोटिरुद्रसंहिता — अध्याय 15
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥
श्रीशिवमहापुराण
कोटिरुद्रसंहिता
पन्द्रहवाँ अध्याय
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंगकी उत्पत्ति – कथा

सूतजी बोले – [ हे ऋषियो ! ] इसके बाद मैं मल्लिकार्जुनकी उत्पत्तिका वर्णन करूँगा, जिसे सुनकर बुद्धिमान् भक्त सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त हो जाता है ॥ १ ॥ पहले मैंने कार्तिकेयके जिस चरित्रका वर्णन किया था, पापोंका नाश करनेवाले उस दिव्य चरित्रका पुनः वर्णन करता हूँ ॥ २ ॥

जब तारकका वध करनेवाले महाबलवान् पार्वतीपुत्र कार्तिकेय पृथ्वीकी परिक्रमाकर कैलासपर पुनः आये, उस समय देवर्षि नारदने वहाँ आकर अपनी बुद्धिसे उन्हें भ्रमित करते हुए गणेशके विवाह आदिका सारा वृत्तान्त कहा ॥ ३-४ ॥ इसे सुनकर अपने माता – पिताके मना करनेपर भी वे कुमार उनको प्रणामकर क्रौंचपर्वतपर चले गये ॥ ५ ॥ जब माता पार्वती कार्तिकेयके वियोगसे बहुत दुखी हुईं, तब शिवजीने उन्हें समझाते हुए कहा – हे प्रिये ! तुम दुखी क्यों हो रही हो, हे पार्वति ! हे सुभ्रू ! दुःख मत करो, तुम्हारा पुत्र [ अवश्य ] लौट आयेगा; तुम इस महान् दुःखका त्याग करो ॥ ६-७ ॥

महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।
गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥


शंकरजी बारंबार कहनेके बाद भी जब पार्वतीको सन्तोष नहीं हुआ, तो उन्होंने देवताओं तथा ऋषियोंको कुमारके पास भेजा। उसके बाद गणोंको साथ लेकर सभी बुद्धिमान् देवता एवं महर्षि प्रसन्न होकर कुमारको लानेके लिये वहाँ गये ॥ ८-९ ॥ वहाँ जाकर कुमारको भलीभाँति प्रणाम करके उन्हें अनेक प्रकारसे समझाकर उन सभीने आदरपूर्वक प्रार्थना की। तब स्वाभिमानसे उद्दीप्त उन कार्तिकेयने शिवजीकी आज्ञासे युक्त उन देवगणोंकी प्रार्थनाको स्वीकार नहीं किया ॥ १०-११ ॥ तत्पश्चात् वे सभी लोग पुनः शिवजीके समीप लौट आये और उन्हें प्रणामकर शिवजीसे आज्ञा ले अपने-अपने धामको चले गये । तब उनके न लौटनेपर शिवजी एवं पार्वतीको पुत्रवियोगजन्य महान् दुःख प्राप्त हुआ ॥ १२-१३ ॥

इसके बाद वे दोनों लौकिकाचार प्रदर्शित करते हुए अत्यन्त दीन एवं दुखी हो परम स्नेहवश वहाँ गये, जहाँ उनके पुत्र कार्तिकेय रहते थे ॥ १४ ॥ तब वे पुत्र कार्तिकेय माता – पिताका आगमन जान स्नेहरहित हो उस पर्वतसे तीन योजन दूर चले गये ॥ १५ ॥ अपने पुत्रके दूर चले जानेपर वे दोनों ज्योतिरूप धारणकर वहीं क्रौंचपर्वतपर विराजमान हो गये ॥ १६ ॥ पुत्रस्नेहसे व्याकुल हुए वे शिव तथा पार्वती अपने पुत्र कार्तिकेयको देखनेके लिये प्रत्येक पर्वपर वहाँ जाते हैं। अमावास्याके दिन साक्षात् शिव वहाँ जाते हैं तथा पूर्णमासीके दिन पार्वती वहाँ निश्चित रूपसे जाती हैं ॥ १७-१८ ॥ उसी दिनसे लेकर मल्लिका (पार्वती) तथा अर्जुन ( शिवजी ) – का मिलित रूप वह अद्वितीय शिवलिंग तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध हुआ ॥ १९ ॥

जो [ मनुष्य] उस लिंगका दर्शन करता है, वह सभी पापोंसे मुक्त हो जाता है और समस्त मनोरथोंको प्राप्त कर लेता है; इसमें सन्देह नहीं है । उसका दुःख सर्वथा दूर हो जाता है, वह परम सुख प्राप्त करता है, उसे माताके गर्भमें पुनः कष्ट नहीं भोगना पड़ता है, उसे धन-धान्यकी समृद्धि, प्रतिष्ठा, आरोग्य तथा अभीष्ट फलकी प्राप्ति होती है; इसमें संशय नहीं ॥ २०–२२ ॥ यह मल्लिकार्जुन नामवाला दूसरा ज्योतिर्लिंग कहा गया है, जो दर्शनमात्रसे सभी सुख प्रदान करता है; मैंने लोककल्याणके लिये इसका वर्णन किया ॥ २३ ॥

॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत चतुर्थ कोटिरुद्रसंहितामें मल्लिकार्जुन नामवाले द्वितीय ज्योतिर्लिंगका वर्णन नामक पन्द्रहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १५ ॥

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