September 27, 2024 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण — कोटिरुद्रसंहिता — अध्याय 07 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण कोटिरुद्रसंहिता सातवाँ अध्याय नन्दिकेश्वरलिंगका माहात्म्य – वर्णन ऋषिगण बोले— हे सूत ! हे प्रभो ! वैशाखमासके शुक्लपक्षकी सप्तमीके दिन नर्मदानदीमें गंगाजी कैसे आयी थीं; इसे विशेषरूपसे बताइये । हे महामते ! उस स्थानपर शिवजी नन्दिकेश नामसे कैसे प्रसिद्ध हुए; आप इस वृत्तान्तको भी अत्यन्त प्रीतिपूर्वक कहिये ॥ १-२ ॥ सूतजी बोले— हे ऋषिश्रेष्ठो ! आपलोगोंने नन्दिकेशसे सम्बन्धित यह बहुत ही उत्तम बात पूछी है; अब मैं उसका वर्णन करता हूँ, इसके सुननेमात्रसे पुण्यकी वृद्धि होती है । [ पूर्व समयमें] किसी ब्राह्मणकी ऋषिका नामक एक कन्या थी; उसने अपनी उस कन्याका विवाह विधानपूर्वक किसी ब्राह्मणसे कर दिया ॥ ३-४ ॥ हे ब्राह्मणश्रेष्ठो ! पूर्वजन्मके कर्मके प्रभावसे वह ब्राह्मणपत्नी पातिव्रत्यधर्ममें परायण होनेपर भी बाल्यावस्था में ही विधवा हो गयी ॥ ५ ॥ तब वह ब्राह्मणपत्नी ब्रह्मचर्यव्रतके पालनमें तत्पर हो, पार्थिवपूजनपूर्वक कठोर तप करने लगी ॥ ६ ॥ महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥ उसी समय महामायावी ‘मूढ’ नामक बलवान् दुष्ट असुर कामबाणसे पीड़ित होकर उस स्थानपर गया और तपस्या करती हुई उस परम सुन्दरी स्त्रीको देखकर वह अनेक प्रकारका प्रलोभन देते हुए उसके साथ सहवासकी याचना करने लगा ॥ ७-८ ॥ हे मुनीश्वरो ! उस समय शिवध्यानमें परायण उस सुव्रता स्त्रीने कामभावनासे उसकी ओर देखातक नहीं । वह अत्यन्त तपोनिष्ठ तथा शिवध्यानमें मग्न थी । अतः तपस्यामें संलग्न उस ब्राह्मणीने उसका सम्मान भी नहीं किया ॥ ९-१० ॥ तब उस स्त्रीके द्वारा तिरस्कृत हुए उस मूर्ख दैत्यने उसपर अत्यन्त क्रोध किया और उसे अपना विकट रूप दिखाया ॥ ११ ॥ इसके बाद वह दुष्टात्मा [ राक्षस ] उस ब्राह्मणीको भयकारक दुर्वचन कहने लगा तथा उसे अनेक प्रकारसे डराने लगा। तब शिवपरायणा वह कृशांगी द्विजपत्नी भयभीत होकर प्रेमपूर्वक बारंबार ‘शिव – शिव’ – ऐसा उच्चारण करने लगी ॥ १२-१३ ॥ अत्यन्त व्याकुल एवं शिवनामका जप करती हुई वह स्त्री अपने धर्मकी रक्षाके लिये जब शिवजीकी शरणमें चली गयी, तब शरणागतकी रक्षा, सदाचारकी स्थापना तथा उस ब्राह्मणीके आनन्दके लिये सदाशिव वहीं प्रकट हो गये ॥ १४-१५ ॥ तत्पश्चात् भक्तवत्सल शिवजीने कामपीड़ित उस मूढ नामक दैत्यको उसी समय भस्म कर दिया ॥ १६ ॥ इसके बाद भक्तोंकी रक्षा करनेमें दक्ष बुद्धिवाले शिवजीने दयादृष्टिसे उसकी ओर देखकर ‘ वर माँगो’— इस प्रकार कहा ॥ १७ ॥ वह पतिव्रता ब्राह्मणी शिवजीके इस वचनको सुनकर उनके मनोहर तथा आनन्दप्रद रूपकी ओर देखने लगी । तदनन्तर उत्तम विचारोंवाली वह पतिव्रता [ब्राह्मणी] सुख देनेवाले महेश्वर शिवको प्रणाम करके सिर झुकाकर तथा हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगी ॥ १८-१९ ॥ ऋषिका बोली— हे देवदेव ! हे महादेव ! हे शरणागतवत्सल! आप दीनोंके बन्धु, सबके ईश्वर तथा सर्वदा भक्तोंकी रक्षा करनेवाले हैं ॥ २० ॥ [हे प्रभो!] आपने इस मूढ नामक दैत्यसे मेरे धर्मकी रक्षा की और आपने जो इसका वध किया है, उससे आपने [सम्पूर्ण] जगत् की भी रक्षा की है ॥ २१ ॥ अब आप मुझे अपने चरणोंमें सदा स्थिर रहनेवाली श्रेष्ठ भक्ति प्रदान कीजिये। हे नाथ! यही मेरा वर है; इससे अधिक दूसरा वर क्या हो सकता है ! हे विभो ! हे महेश्वर ! मेरी एक और प्रार्थना आप सुनें – आप लोककल्याणके निमित्त यहीं पर निवास कीजिये ॥ २२-२३ ॥ सूतजी बोले— इस प्रकार महादेवकी स्तुतिकर उत्तम व्रतवाली वह ऋषिका चुप हो गयी; तब दयालु शिवजी कहने लगे— ॥ २४ ॥ गिरिश बोले— हे ऋषिके! तुम उत्तम चरित्रवाली हो और तुम मुझमें विशेष रूपसे भक्ति रखती हो, इसलिये तुमने जो-जो वर माँगा, उन सभी वरोंको मैंने तुम्हें प्रदान किया ॥ २५ ॥ हे विप्रो ! उन सभीने अत्यन्त प्रीतिपूर्वक शिवजीको प्रणामकर उनका पूजन किया और सिर झुकाकर हाथ जोड़कर प्रसन्न चित्तसे उनकी स्तुति की ॥ २६-२७ ॥ इसी समय स्वर्नदी गंगाजीने [ वहाँ आकर ] साध्वी ऋषिकाके भाग्यकी प्रशंसा करते हुए प्रसन्नचित्त होकर उससे कहा—॥ २८ ॥ गंगाजी बोलीं— [ हे साध्वि !] तुम वैशाख महीनेमें एक दिन मेरे कल्याणके लिये अपने समीपमें मुझे रहनेका वचन दो, जिससे मैं एक दिन तुम्हारा सामीप्य प्राप्त करूँ ॥ २९ ॥ सूतजी बोले— गंगाजीका वचन सुनकर श्रेष्ठ व्रतवाली उस साध्वीने लोकहितके लिये प्रेमपूर्वक यह वचन कहा—’ ऐसा ही हो’ ॥ ३० ॥ शिवजी भी उसके आनन्दके लिये उसके द्वारा निर्मित उस पार्थिव लिंगमें प्रसन्न होकर अपने पूर्णांशसे प्रविष्ट हो गये ॥ ३१ ॥ इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु आदि सभी देवता तथा गंगाजी प्रसन्न हो शिवजीकी तथा उस [ ब्राह्मणी] -की प्रशंसा करने लगे और अपने-अपने स्थानको चले गये । उसी दिनसे इस प्रकारका यह परम पावन तीर्थ हो गया और शिवजी भी वहाँ सभी पापोंका विनाश करनेवाले नन्दिकेश नामसे प्रसिद्ध हो गये ॥ ३२-३३ ॥ हे द्विजो ! तभीसे गंगाजी भी सबके कल्याणकी इच्छासे तथा मनुष्योंसे ग्रहण किया हुआ अपना पाप धोनेके लिये प्रत्येक वर्ष इस दिन यहाँ आती हैं ॥ ३४ ॥ मनुष्य वहाँ स्नानकर और भलीभाँति नन्दिकेश्वरकी पूजाकर ब्रह्महत्या आदि सभी पापोंसे छूट जाता है ॥ ३५ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत चतुर्थ कोटिरुद्रसंहितामें नन्दिकेश्वर शिवलिंगमाहात्म्यवर्णन नामक सातवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ७ ॥ Please follow and like us: Related