October 29, 2025 | aspundir | Leave a comment श्रीगणेशपुराण-क्रीडाखण्ड-अध्याय-086 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ छियासीवाँ अध्याय गौतम आदि महर्षियों द्वारा पार्वतीपुत्र का भूमि-उपवेशन नामक संस्कार सम्पन्न किया जाना, बालक के वध की इच्छा से व्योमासुर का वहाँ आना, बालक द्वारा व्योमासुर का वध अथः षडशीतितमोऽध्यायः भूम्युपवेशवर्णनं ब्रह्माजी बोले — तदनन्तर गौरी ने उन महर्षि मरीचि की गोद से पुत्र को उठा लिया और उन्हें नमस्कार करके तथा उनसे अनुमति लेकर वे अत्यन्त हर्षित होकर अपने भवन में चली गयीं ॥ १ ॥ वे महर्षि भी उनसे अनुमति प्राप्त कर भगवान् शिव को प्रणामकर अपने आश्रम को गये। तदनन्तर गौरी ने एक शुभ दिन में उत्तम मुहूर्त में गौतम आदि महर्षियों को आमन्त्रित कर बुलाया और बालक का उपवेशन संस्कार करवाया। पार्वतीजी ने उन ब्राह्मणों को बैठाकर पहले स्वयं उन्हें प्रणाम किया, फिर बालक से उन द्विजजनों को प्रणाम करवाया ॥ २-३ ॥ उस समय सभी देवगण अपने हाथों में विविध प्रकार की उपहार-सामग्री लेकर वहाँ आये। साथ ही शिव के गण, गन्धर्व तथा अप्सराएँ भी वहाँ आयीं ॥ ४ ॥ तदनन्तर गौरी उन विप्रों से बोलीं — हे श्रेष्ठ द्विजो ! आप सभी मुनियों से विचार-विमर्श करके इस बालक का उपवेशन-संस्कार सम्पन्न करें। तब वे सभी मुनि बोले — आज बृहस्पतिवार है, त्रयोदशी तिथि है और रेवती नक्षत्र है, इसलिये आज ही उपवेशन-संस्कार-सम्बन्धी महोत्सव सम्पन्न करने योग्य है ॥ ५-६ ॥ तदनन्तर महर्षि गृत्समद ने तुरन्त भूमि पर विविध प्रकार के रत्नसमूहों को रखकर शीघ्र ही रत्नों के द्वारा चौक का निर्माण किया । गणेश-पूजन करने के अनन्तर उन्होंने पुण्याहवाचन किया । तदनन्तर दिव्य वस्त्रों से सुसज्जित किये हुए उस चौक पर पार्वती के पुत्र को बैठाया और फिर सौभाग्यशालिनी स्त्रियों के द्वारा बड़े ही आदरपूर्वक उसका नीराजन करवाया । वह बालक रत्नों के आभासमूह में स्थित था और नाना प्रकार के अलंकारों से प्रकाशित हो रहा था ॥ ७–९ ॥ उस समय दिव्य वाद्य बजाये जा रहे थे, तभी सभी जनों ने शिव-पार्वती को तथा उनके पुत्र को श्रद्धाभक्तिपूर्वक विविध प्रकार की भेंट-सामग्री प्रदान की ॥ १० ॥ तदनन्तर देवी पार्वती ने रत्न, वस्त्र तथा सुवर्ण आदि प्रदानकर ब्राह्मणों की पूजा की और उन सभी के द्वारा आशीर्वाद के रूप में प्राप्त अक्षतों को उस बालक के ऊपर छोड़ा। माता भवानी ने कन्याओं सहित मुनिपत्नियों का पूजन किया। वे मुनिपत्नियाँ बोलीं — हे गिरिजा ! तुमसे अधिक धन्य अन्य कहीं कोई स्त्री नहीं है। इस प्रकार का सभी शुभ लक्षणों से समन्वित पुत्र भी कहीं किसी का नहीं है ॥ ११–१२१/२ ॥ ब्रह्माजी बोले — वे मुनिपत्नियाँ इस प्रकार कह ही रही थीं कि उसी समय व्योमासुर नामक एक दैत्य वहाँ आ पहुँचा। वह महान् दुष्ट व्योमासुर नाना प्रकार की माया करने में पारंगत था, उसके कान आकाश तक व्याप्त थे। तीनों लोकों में उसके समान बलशाली कोई भी नहीं था ॥ १३-१४ ॥ वहाँ दरवाजे के समीप एक आम का वृक्ष था, जिसमें अनेक डालियाँ लगी थीं। वह आम का वृक्ष सैकड़ों हाथियों के लिये भी अभेद्य था और प्रलयकालीन वायु के द्वारा भी न तोड़े जाने योग्य था ॥ १५ ॥ वह व्योमासुर अपनी माया के बल से उस आम के वृक्ष में उसी प्रकार प्रविष्ट हो गया, जैसे कि किसी सीधे- सादे व्यक्ति को प्रारब्धवश भूत लग जाता है ॥ १६ ॥ प्रलयकालीन आँधी के समान उसने उस आम के वृक्ष को हिला डाला। वृक्ष टूटकर कहीं गिर न जाय, इस भय से वहाँ आये हुए मुनिगण भयभीत हो गये और कहने लगे — यह महान् वृक्ष हवा के चले बिना ही कैसे काँप रहा है? तभी उन्होंने उस वृक्ष से निकलते हुए ‘कट – कट’ शब्द को सुना ॥ १७-१८ ॥ सभी स्त्रियाँ, शिवगण तथा वे मुनिगण वहाँ से पलायित हो गये। पार्वती भी घबड़ाहट के मारे अपने बालक को भुलाकर स्वयं भी भाग चलीं ॥ १९ ॥ इसी बीच वह आम का वृक्ष बालक के ऊपर गिरा । तब बालक अपने दोनों हाथों से उस पर आघात किया । जिससे सैकड़ों टुकड़े होकर वह वृक्ष भूमि पर गिर पड़ा। वह वृक्ष उसी प्रकार चूर्ण-चूर्ण हुआ, जैसे कि पत्थर के ऊपर रखी हुई सुपारी घन के द्वारा चोट करने पर टुकड़े-टुकड़े हो जाती है । उस समय उस वृक्ष की शाखाएँ, जो कि पल्लवों से समन्वित थीं, आकाश में उड़ने लगीं ॥ २०-२१ ॥ वृक्ष की शाखाओं के गिरने से ऋषियों के कुछ आश्रम भग्न हो गये। पल्लवों से युक्त कुछ शाखाएँ वहाँ से भाग रहे लोगों पर भी गिरीं ॥ २२ ॥ तदनन्तर वह दुष्ट व्योमासुर अपने मुख को खोलकर रक्त वमन करता हुआ प्राणहीन होकर नीचे गिर पड़ा। गिरने से उसके सैकड़ों टुकड़े हो गये । तदनन्तर वे सभी लोग तथा स्त्रियाँ वहाँ आयीं उन्होंने बालक को पूर्व की भाँति निःशंक होकर बैठा हुआ देखा ॥ २३-२४ ॥ वह सुमेरुपर्वत के समान निश्चल तथा स्वस्थ था। यह देखकर सभी को बड़ा ही विस्मय हुआ कि इस पाँच मास की अवस्था वाले बालक ने खेल-खेल में वृक्षसहित उस महान् बल-पराक्रमशाली दैत्य को अपने हाथ के आघात से सैकड़ों टुकड़ों में खण्डित कर दिया ! उसी समय हाहाकार की ध्वनि करती हुई पार्वती दौड़ते हुए अपने पुत्र के पास आयीं ॥ २५-२६ ॥ वे मुनिगण उनसे कहने लगे — आपके पुत्र ने दैत्य का वध कर दिया है। तब पार्वती ने अपने बालक को हिमवान् पर्वत के समान निश्चल बैठा हुआ देखा। तदनन्तर पार्वती ने बालक को उठाकर अपनी गोद में रखकर उसे प्रसन्नतापूर्वक स्तनपान कराया और महर्षि मरीचि के वचनों का स्मरण किया तथा महेश्वर की प्रशंसा की ॥ २७-२८ ॥ भगवान् जिसकी सदा रक्षा करते हैं, उसे जो मारने की इच्छा करता है, निश्चय ही वह उसी प्रकार विनष्ट हो जाता है, जैसे दीपक के पास जाने वाला पतिंगा नष्ट हो जाता है ॥ २९ ॥ तदनन्तर सभी मुनिगण तथा स्त्रियाँ अपने-अपने स्थानों को चले गये। इसके बाद कुछ गण वहाँ आये और पार्वती के पुत्र को सुरक्षित देखकर कहने लगे कि माता आप अत्यन्त धन्य हैं, जो कि आपका यह पुत्र असुर से बच गया । निश्चित ही दुष्ट लोग ही विनष्ट होते हैं। साधु पुरुष कभी भी कोई कष्ट नहीं प्राप्त करते ॥ ३०-३१ ॥ तदनन्तर पार्वती ने उन सभी गणों तथा स्त्रियों को भी शर्करा प्रदानकर जाने की आज्ञा प्रदान की । प्रसन्न होकर पार्वती अपने पुत्र को लेकर अपने भवन में चली गयीं ॥ ३२ ॥ जो भक्तिमान् पुरुष इस पवित्र आख्यान का श्रवण करता है, उसे कभी कहीं कोई भी बाधा नहीं प्राप्त होती और वह सर्वत्र निर्भय होकर रहता है ॥ ३३ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीगणेशपुराण के क्रीडाखण्ड में ‘विनायक का भूमि-उपवेशन- वर्णन’ नामक छियासीवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ८६ ॥ Content is available only for registered users. 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