November 2, 2025 | aspundir | Leave a comment श्रीगणेशपुराण-क्रीडाखण्ड-अध्याय-094 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ चौरानबेवाँ अध्याय मुनिबालकों के साथ गुणेश का महर्षि गौतम तथा अहल्या के आश्रम में जाकर ओदन-क्रीडा करना, पार्वती द्वारा गुणेश को बन्धन में डालना तथा उनकी माया से मोहित होना, महर्षि गौतम द्वारा अहल्या से गुणेश्वर की भगवत्ता का वर्णन अथः चतुर्नवतितमोऽध्यायः गौतमभोजनहरणं ब्रह्माजी बोले — मुनियों के जो बालक वहाँ गुणेश के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे, वे सभी गुणेश के आने पर उनके समीप गये। उनके जयकार के शब्दों से सम्पूर्ण आकाश-मण्डल, दिशाएँ और दिशाओं का मध्य भी गर्जन करने लगा ॥ १ ॥ वे सभी पुनः विविध प्रकार के नृत्यों तथा गीतों से अनेक प्रकार की क्रीड़ाएँ करने लगे । बालकों के इस प्रकार से क्रीडा करते-करते सूर्योदय के अनन्तर डेढ़ प्रहर का समय व्यतीत हो गया ॥ २ ॥ उन सभी के माता-पिता उनको ढूँढ़ते हुए जब गाँव के मध्य किसी भी घर में नहीं देख पाये, तब वे सभी छड़ी लेकर वहाँ उन बालकों के पास गये, जहाँ वे सब चारों ओर गोला बनाकर तथा गुणेश्वर को बीच में करके अनेक प्रकार की क्रीडा कर रहे थे । उन लोगों ने स्वयं नाच रहे और दूसरे बालकों को भी नचा रहे गुणेश की भर्त्सना की ॥ ३-४ ॥ माता-पिता बोले — तुम्हारे साथ के बिना हमारे बालक न तो स्नान करते हैं और न भोजन करते हैं। इन्होंने अपने आचार-विचार, अध्ययन, ब्राह्मणोचित कर्मों तथा विनय का भी परित्याग कर दिया है ॥ ५ ॥ तदुपरान्त उन गुणेश का दर्शनकर उनका क्रोध जाता रहा और वे आपस में एक-दूसरे से कहने लगे — इसको ताड़ित करने की पहले हमारी जो बुद्धि हो रही थी, वह इसे देखकर इस प्रकार न जाने कहाँ चली गयी है? यदि हम इसके माता-पिता शिव-पार्वती से इसके विषय में कहते हैं, तो वे भी इसका क्या कर लेंगे ? इस बालक ने तो अनेकों महान् बलशाली दैत्यों का वध कर डाला है। हे गुणेश्वर! तुम्हारे भय से हम कहीं दूसरे स्थान पर चले जाते हैं ॥ ६-७१/२ ॥ ब्रह्माजी बोले — वे लोग इस प्रकार कह ही रहे थे कि वे गुणेश्वर वहीं अन्तर्धान हो गये और फिर दूर जाकर उस स्थान पर प्रकट हुए, तब बालकों ने उन्हें देखा तो वे सभी बालक अपने माता-पिता को छोड़कर पुनः उन गुणेश के पास चले गये ॥ ८-९ ॥ खेलते-खेलते वे सभी शीघ्र ही महर्षि गौतमजी के श्रेष्ठ आश्रम में पहुँच गये। वहाँ उन्होंने मुनि गौतम को ध्यान में स्थित देखा और उनकी भार्या को भोजन पकाते हुए देखा। उस समय वे गुणेश रसोई के मध्यस्थान में गये और उन्होंने भात का बर्तन उठा लिया तथा उन सभी को विभाजित कर अन्न प्रदान करके वे आदरपूर्वक उनसे कहने लगे ॥ १०-११ ॥ मेरे साथ रहने के कारण तुम सभी लोग बहुत देर तक भूखे रह गये। अब निश्चिन्ततापूर्वक भोजन कर लो, उसके बाद पुनः हम लोग क्रीडा करेंगे ॥ १२ ॥ तब महर्षि गौतम की भार्या देवी अहल्या शीघ्र ही उन गुणेश पर गुस्सा हो गयीं और बोलीं — तुमने मेरे अन्न का स्पर्श क्यों किया ? हे चंचल बालको ! अभी तक न तो बलिवैश्वदेवकर्म किया गया है और न ही देवताओं को भोग लगाया गया है। वे मुनिश्रेष्ठ गौतम जब ध्यान पूर्णकर आयेंगे तो क्या करेंगे ? तब देवी अहल्या ने उन मुनिश्रेष्ठ गौतम को ध्यान से जगाया ॥ १३-१४ ॥ जब मुनि गौतम का ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने क्षुधा से व्याकुल उन सभी बालकों को भोजन करते हुए देखा । तदनन्तर वे गुणेश्वर से बोले ॥ १५ ॥ गौतम बोले — श्रेष्ठ माता-पिता के पुत्र होकर भी आप अन्याय क्यों करते हैं ? आपके अत्यन्त अद्भुत कर्मों के विषय में सुनकर हम इससे पूर्व आपको परात्परतर परब्रह्मस्वरूपी भगवान् मान चुके हैं, लेकिन हे गुणेश्वर ! लगता है, इस समय आप बालभाव से यह सब कर रहे हैं ॥ १६-१७ ॥ ब्रह्माजी बोले — तदनन्तर वे मुनि गौतम गुणेश्वर का हाथ पकड़कर पार्वती के भवन में आये, वे अपने हाथ में अन्नसहित उस पात्र को भी घर से साथ में ले आये थे । गौतम बोले — हे माता ! आपका यह बालक नित्य मेरे साथ अन्याय करता है। आज मैं आपसे यही बात कहने आया हूँ, हे गौरी! अब इसके बाद मुझे क्या करना चाहिये ? यदि आप यह चाहती हैं कि मैं यहाँ से कहीं दूर रहने के लिये चला जाऊँ, तो वैसा आप बोलें ॥ १८- १९१/२ ॥ ब्रह्माजी बोले — तदनन्तर मुनि के वचनों को सुनकर पार्वती अत्यन्त रुष्ट हो गयीं, वे अपनी आँखों से आग बरसाती हुई छड़ी से गुणेशको पीटने लगीं और क्रुद्ध हुई वे गौरी मुनि को प्रणामकर विनयपूर्वक उनसे कहने लगीं ॥ २०-२१ ॥ हे मुने! इसके जन्म लेने के समय से ही मुझे भय लगा रहता है, मुझे राक्षसों के द्वारा किये जाने वाले न जाने कितने ही विघ्नसमूहों को अभी और देखना है ॥ २२ ॥ यह तो सब प्रकार से दुष्ट और मुनियों के पुत्रों में वैर उत्पन्न करने वाला है, फिर भी स्त्रियाँ तथा मुनिश्रेष्ठ कोई भी इसकी बात बताने मेरे पास नहीं आते हैं ॥ २३ ॥ ‘यह पार्वती का पुत्र है’ यह समझकर लोग इसे शाप नहीं देते हैं। तदनन्तर पार्वती ने उन महर्षि के सामने ही पुत्र गुणेश के हाथ-पैरों को बाँधकर और उन्हें घर के भीतर डालकर उस घर के दरवाजे को दृढ़तापूर्वक बन्द कर दिया। ‘ऐसा न करो-ऐसा न करो’ कहते हुए मुनि गौतम अपने आश्रम के लिये चले गये ॥ २४-२५ ॥ तदनन्तर वे सभी बालक उन गुणेश्वर के विषय में चिन्ता करने लगे कि इसका दर्शन हमें किस प्रकार और कब होगा? गिरिकन्या पार्वती ने तो कसकर दरवाजा बन्द करके उसे घर के भीतर बन्द कर दिया है । वे बालक इस प्रकार से बोल ही रहे थे कि उसी समय क्षणभर में ही वे गुणेश उन सबके बीच आ पहुँचे ॥ २६-२७ ॥ वे बालक गुणेश उस एक ही समय में माता की गोद में तथा घर के भीतर भी दिखायी दे रहे थे। तब उन बालकों ने उनसे कहा — हे गौरी! आपका पुत्र घर से बाहर निकल आया है ॥ २८ ॥ उस समय देवी पार्वती ने गुणेश्वर को घर के भीतर बँधा हुआ ही देखा और बाहर खड़े उन मुनिबालकों को भी गुणेश के स्वरूपवाला ही देखा ॥ २९ ॥ यह देखकर पार्वती व्याकुल हो गयीं। वे जिस किसी को भी गुणेश्वर समझकर अपना स्तनपान कराने के लिये बुलाने लगीं, उस समय वे बालक पार्वती से मना करते थे और कहते थे कि हे शिवे ! आपका पुत्र गुणेश तो घरके भीतर ही स्थित है ॥ ३० ॥ तदनन्तर पार्वती ने दरवाजा खोला और बालक गुणेश को बन्धन से मुक्तकर वे प्रसन्नतापूर्वक उन्हें अपना स्तनपान कराने लगीं। इधर महर्षि गौतम अपने आश्रम में आ गये और देवताओं का पूजन करने लगे ॥ ३१ ॥ महर्षि ने उन सभी देवताओं को गुणेश के रूपवाला ही देखा, जो भोग से तृप्त हो गये थे। उन्होंने सामने ही भोग में प्रदत्त अन्न को बिखरा हुआ भी देखा। यह देखकर महर्षि गौतम के मन में बड़ा आश्चर्य हुआ ॥ ३२ ॥ वे अपने मन में विचार करने लगे कि मैंने दुर्बुद्धियुक्त कार्य किया है। मैंने गुणेश के विषय में सब कुछ पार्वती को बता दिया और भोजन का पात्र भी उन्हें दिखला दिया। इस पर देवी पार्वती ने जगत् के कारण तथा अव्यक्त स्वरूपवाले उन गुणेश्वर को पीटा भी और बन्धन में भी डाल दिया। वे पर-से भी सदा परे हैं, जिनके तृप्त होने पर महान् फल की प्राप्ति होती है ॥ ३३-३४ ॥ ऐसे उन गुणेश ने मुनिबालकों के साथ यहाँ आकर भोजन किया था, उनकी माया से मोहित हो जाने के कारण मैं पहले उन्हें जान नहीं सका था ॥ ३५ ॥ ब्रह्माजी बोले — यह सब देखकर देवी अहल्या भी अत्यन्त आश्चर्यचकित मन वाली हो गयीं और उन्होंने दुबारा भोजन बनाया । महर्षि गौतम ने भी ध्यान में स्थित होकर अपने सभी नित्यकर्मों को पूर्ण किया ॥ ३६ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीगणेशपुराण के क्रीडाखण्ड में ‘गौतमाश्रमगमन’ नामक चौरानबेवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ९४ ॥ Content is available only for registered users. 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