September 30, 2015 | aspundir | Leave a comment श्रीबगला ध्यानावली पीत-पीत वसन प्रसार करैं देह-छवि, अंग-अंग भूषन, सु-पीत झरि लावै है । मुख-कान्ति पीत-पीत, तीनों नेत्र पीत-पीत, अंग-राग पीत-पीत शोभा सरसावै है ।। निज भीत भक्तन को, हीत देति दौरि आय, अपनी दया को, रुप प्रकट दिखावै है । बगला ! तिहार नाम जपत, स-भक्ति जौन, भुक्ति पावै मुक्ति पावै, पीता बन जावै है ।। १ पीले-पीले वसन हैं, भूषन हू पीले-पीले, सुमुखी विचित्र रुप, आपनो दिखायो है । झपटि गही है जीभ, निज भक्त-शत्रु कर, मारिबे को ताहि बेगि, मुद्गर उठायो है ।। चकित कियो है ताहि, बार-बार त्रस्त करि, बोलि न सकत वह, ऐस डरपायो है । बगला ! तिहारो देखि, अद्भुत स्वरुप यह, साधक प्रसन्न मन, तोर यश गायो है ।। १ कोऊ जपै ह्लीम ह्लीम, द्वि-भुज विलोकि रुप, कोऊ जपै हरीं, ध्याय चार भुज-धारिणी । हलरीम कोऊ जपै, हिय लाय दिव्य रुप, पावत प्रमोद भूरि, भक्ति अन-पायिनी ।। बगला ! भवानी तोरि, विशद कहानी जग, जानि-जानि रीझै तो पै, तू ही मन-भाविनी । भक्तन को खोजि-खोजि, उर लाय हरै पीर, अम्बिका तिहारी दया, भुक्ति-मुक्ति-दायिनी ।। २ Related