October 12, 2015 | aspundir | Leave a comment हिन्दी सप्त-श्लोकी चण्डी-पाठ ।। श्री शिव बोले ।। ।। पूर्व पीठिका ।। तुम हो देवी ! भक्ति-सुलभ, सब कार्य कलापों की स्वामिनि हो । बोलो, कलि में कार्य-सिद्धि-हित, जन को क्या उपाय करना है ? ।। श्रीदेवी बोलीं ।। कलियुग का उत्तम-तम साधन, श्रवण करें हे देव ! ध्यान धर । बतलाती मैं स्नेह-सहित, केवल माता की स्तुति करना है ।। ।। ध्यान ।। जिनके श्री अंगों का तेजस विद्युत-सा है – वह जो केहरि के कन्धे पर बैठीं, भीषण-सी लगती है । गदा, ढाल, धनु जिनके कर-कमलों में शोभित – तर्जनि मुद्रा, पाश, चक्र, जो खड्ग, बाण धारण करती हैं ।। कन्याएँ ले खड्ग-ढाल जिनकी सेवा-रत – जिनके मस्तक पर शशि से उज्ज्वल किरीट शोभा पाता है । उन्हीं त्रि-नेत्रा अग्नि-स्वरुपा दुर्गा का मैं – करता सादर ध्यान, मुझे उनका यह दिव्य रुप भाता है ।। ।। सात श्लोक ।। ज्ञानी लोगों के भी चित्त को, बल-पूर्वक कर्षित करती । वह भगवती महा-माया ही, मोह हेतु है ला देती ।। १ दुर्गे ! याद किए से तुम तो, जीवों का भय हरती हो, करते हैं यदि स्वस्थ याद तो, शुभ मति उनको देती हो । दारिद्र-दुःख हरने वाली ! कौन तुम्हारे है अतिरिक्त , पर-उपकार हेतु रत जग में, दयार्द्र रहता है तव चित्त ।। २ सभी मंगलों की शिव-रुपा ! गौरी ! शिवा ! शरणदा ! नमस्कार तुमको नारायणि ! त्रि-नयना ! हे सिद्धि-प्रदा ।। ३ शरणागत का दैन्य-दुःख से, परित्राण करने वाली । प्रणमन देवि ! तुम्हें नारायणि ! सबका दुख हरने वाली ।। ४ सर्व-शक्ति-अन्विता देवि हे ! सर्व स्वरुपा ! सर्वेशा । नमस्कार तुमको हे दुर्गा ! भय से रक्षा करो महेशा ।। ५ सारे रोग नाश हो करतीं, जब तुम होती हो सन्तुष्ट, सकल अभीष्ट ध्वंस कर देतीं, हो जातीं यदि कुछ भी रुष्ट । है लेते तेरा जो आश्रय, आती उनके विपद न पास । हो जाते आश्रय-निकेत वे, देते सबको सदा सुपास ।। ६ नाश हमारे रिपुओं का कर, सब त्रिलोक-बाधा की दूर । हे सर्वेश्वरि ! यह सब फिर भी, करना होगा काम जरुर ।। ७ ।। फल-श्रुति ।। यह स्तोत्र देवी-प्रदत्त, वैभव-कुल-दायक, सब प्रकार से रक्षा करता । परम गुह्य यह, पाठ कराने, पठन-श्रवण द्वारा, त्रिलोक की विजय दिलाता ।। ।। क्षमा-प्रार्थना ।। तेरी कृपा करे यह वन्दन सफल, पूर्ण मम हे सर्वेश्वरि ! मन्त्र-हीन है, भक्ति-हीन यह, क्रिया-हीन यद्यपि देवश्वरि ! ।। ।। पाठ-समर्पण ।। यह जप तुझे समर्पित सादर, परम गुह्य-रुपिणि माँ ! मेरा । सिद्धि प्रदान करे देवी ! वह दिव्य प्रसाद महेश्वरि ! तेरा ।। Related