August 13, 2015 | aspundir | Leave a comment श्री हनुमान लहरी दोहा गुरु पद पंकज धारि उर , सुर नर शीश नवाय । मारूत सुत बलवीर कहं , ध्यावत चित मन लाय ॥ प्रथम वन्दि सियराम पद , अवध नारि नर संग । वन्दौ चरण सुध्यान धरि , हनुमत कंचन रंग ॥ मन चित देइ सुनौ विनै , हौं तुम दीन दयाल । और नहिं कछु वासना , दासहिं करहु निहाल ॥ तात बड़ाई रावरी , बिछुवत जोति अनन्द । सब विधि हीन मलीन मति , अहै दीन ब्रजनन्द ॥ जानै जग दातव्यता , नाथ मोर सरवस्य । पै बिरलै कोउ जानि हैं , यह अति गूढ़ रहस्य ॥ जय जय दारुण दुःखदलन , महावीर रणधीर । कर गहि लेउ उबार प्रभु , आय जुरी अति भीर ॥ गदगद गिरा गुमान तज , जुगल पाणि करि जोर । हनुमत अस्तुति करत हुँ ,सिगरी भांति निहोर ॥ ” छप्पय छन्द ” जै पवनसुत दयानिधान दारिद दु:ख भंजन । जैति अंजनि तनय सदा सन्तन मन रंजन ॥ जैति वीर सिरताज लाज राखऊ मम आजू । जै जै रघुवर दास जासु साजेब शुभ काजू ॥ प्रभु जस करि बन्धु सु कहं कियो पार दु:ख सिन्धु सों । हनुमंत मेरो दु:ख दूर करो होउ सहाय सु बन्धु सों ॥ जैति जैति दुखहरन सरन अब मोको दीजै । जैति जैति हनुमंत अंत न थारो पईजै । जै अंजनिसुत वीर धीर अति धरम धुरन्धर । जय जय रघुकुल कुमुद चेट जय भच्छक रविकर । जय मारुतसुत तेजवान दुख-द्वंद दलैया । जय सीता सुख मूल तूल सम लंक जलैया । रघुवर कर सब काज लाल तुम आप संवारो । रुचिर वाटिका दशकन्धर कर नाथ उजारो । वानर दल कहं विजय तात तुम आप दिवायो । लंका कहं सन्धान करी सीता सुधि पायो । सुग्रीवहिं पहं राम आनि शुभं सखा बनायो । लाय विभीषण नाथ निकट तुम अभय करायो । सागर उतरेउ पार मेल मुद्रिका मुख माहीं । सुन शुभमय संवाद अचरज कोऊ नाहीं । लाय सजीवनि मुरि लखन कहं जीवित कीनो । शोक जलधि सो आप काढ़ि रघुवर कहं लीनो । रघुपति सादर सखा भाषि उर लावत भयऊ। सकल शोक तत्काल ह्रदय सों बाहर गयऊ । श्रीमुख तेरे विशद गुणन को भाष्यो स्वामी । भरत बाहू बल होय तोहि कह अन्तरयामी । भाखि सुखद संवाद तात भय भरत नसायो । हरषि सुजस तत्काल अवध नारी-नर गायो । रघुपति कर कछु काज तात तुम बिन नहिं सरितो । सुरपुर मो जय जयति शब्द तुम बिन को भरितो । दोहा :- देइ बड़ाई वानरन ,असुरन को वध कीन । तो सम को प्रिय सीय को ,जासु शोक हर लीन ॥ जय जय शंकर सुवन जयति जय केसरीनन्दन । जय जय पवनकुमार जयति रघुवर पद वन्दन ॥ जय जय जनककुमारी प्यारी यह रघुपति पायक । जयति जयति जय जयति तात सुर साधु सहायक ॥ सकल द्वार सों हार हाय तुव द्वारहिं आयऊँ । दानशीलता देखि रावरी हिय सुख पायऊँ ॥ या दर सो महरूम तात अब कहां सिधारुं। विपत काल में अहो नाथ अब काहि पुकारुं ॥ कर गहि लेउ उबार नाथ हूँ दास तिहारो । कर गहि लेउ उबार नाथ निज ओर निहारी । कर गहि लेउ उबार नाथ सिगरी विधि हारी ॥ गहि कर अजऊं अबारु नाथ भव सिन्धु अथाहै । गहि कर अजऊं अबारु नाथ ब्रज डूबन चाहै ॥ द्रवहु द्रवहु यहि काल नाथ मोको कोऊ नाहीं । द्रवहु द्रवहु यहि काल हार आयऊं तुव पाहीं ॥ द्रवहु द्रवहु हनुमत कपि दल के सिरताजू । द्रवहु द्रवहु कपिराज ताज तुम सन्त समाजू ॥ विनवत हौं कर जोर अजौं टारहु मम संकट । विनवत हौं कर जोर नाथ काटहु मम कंटक ॥ विनवत हो हे नाथ दया कर रन ते हेरहु । विनवत हो हे नाथ यह दारुण दुख टेरहु ॥ पद गहि विनवौं नाथ तोहिं कहं कस नहिं भावै । पद गहि विनवौं हाय नाथ तुव दया नहिं आवै । पद गहि विनवौं हाय अजहु मो अभय कीजै । पद गहि विनवौं हाय अजहु मो सुख सम्पत्ति दीजै ॥ सुखसागर आनन्द धन सन्तन के सिरमौर । दुख वन पावक नाथ तुम , सिर पर सोहत खौर ॥ रोला छन्द आज जुरयो यहि काल मोहि पै दारुण सोको । सूझत ना तिहुं लोक मोहि तोसो कोउ मोको । स्वारथ हित सब जगत मांझ राखत है प्रीती । पै रौरी हे नाथ अहै अति अनूठी रीती । हाय हाय है नाथ हाय अब मों न बिसारहु । हाय हाय है नाथ हाय अब कोप निवारहु । धन बल विद्या हाय कछु नहीं मो ढिग सांई । कवन सम्पदा कवन तात कब तो बिन पाई । दीन हीन सब भांति हुजिये वेग सहायक । फेरिये कृपा कटाक्ष आप सब विधि सब लायक । सुखद कथा तुव हाय नाथ कस दीन सुभाखै । सदा सुचरन पाहिं चित्त आपन कस राखै । काम क्रोध मद लोभ मोह मोहिं सदा सतावैं । चित्त वित्त सो हीन दीन कस तो कहं पावैं । अजहुं होय सहाय मोर सब काज संवारहु । गयऊ सकल विधि हारि हाय अब मोहि संभारहु । सदा कहत सब लोग आप कहं संकटमोचन । सदा कहत सब लोग आप दारुण दुखमोचन । अपनहिं ओर निहारि नाथ मो कहं जनि हेरहु । आय जुरेउ दुख विकट ताहि कहं तुरतहिं टेरहु । और कहौ कत नाथ तोहिं कह बहुत बुझाई । और कहौ कत हाय मोहि सों कहि नहि जाई । सदन गुनन के खान दीन हित जन सुखदायक । पवनपुत्र दुख देख अजहुं प्रभु होहु सहायक । सोरठा :- अजहुं होय सहाय , तात निवारो दुख सब । कहा कहो समुझाय ,अजहुं न बिगरेऊ काज कछु । हरिगीतिका छन्द बहु भांति विनय बहोरि हे प्रभु जोरि कर भाखत अहौं । तुव चरन रत मम मन रहे कछु और वर जासो लहौं रघुवरी पायन पदुम पावन भृंग मोहि बनाईये । भव सिन्धु अगम अगाध सो प्रभु पार अजहु लगाईये । तुम तजि कहों कासों विपति अब नाथ को मेरी सुनै । रावरि भरोस सुवास तजि प्रभु और को कछु न गुनै । वैरि समाज विनाश कर हनुमान मोहि विजयी करौ । मेरी ढिठाई दोष अवगुन पै न चित्त सांई धरौ । जब लगि सकल न गुनान तजि नर आइ राउर पद गहै । तब लगि दावानल पाप को बहुत भांति तन मन ही दहै । जब लगि न रावरि होय नर सब भांति मन कर्म वचन ते । तब लगि न रघुवर दास होत करोर जोखिम यतन ते । यहि मान जिय परमान निश्चय सरन राउर हम गहै । परलोक लोक भरोस तजि नित नाथ का दरशन चहै । हम अपनि ओर निहोर बहु विधि नाथ नित विनती करो । हरषाय सादर नाथ तुम गुन गात निज हियरो धरो । जनि करहुं मोहि अनाथ नाथ सुदास हूँ मैं रावरो । हनुमान हैं शुचि पतित पावन दास जो पै रावरो । अबहुं करो सनाथ नाथ न तो जगत मोहि तोहि का कहै । यह रुचिर पावन स्वामि सेवक नेह नातो क्यौं रहै । दोहा :- विजय चहैं निज काज महं, हनुमत कहं सुनाय । लखि मेरी अज दुरदसा, द्रवहु अजहुं तुम धाय । सोरठा हार देत सब काज , नाथ रावरे हाथ महं । सजहु सकल शुभ साज , भजहु जानि अब मोहि तजि । पंगु भई मो बुध्द , अकथ कथा कस कहि सकौं । करहु काज मम सिद्ध , और कहा तोसौं कहौं । सुनै न समुझे रीत , मगन भयो मन प्रेम महं । अब न सिखावहु नीत , यासो मोहि न काज कछु । नहि दर छाड़ब हाय , मारहु या जीवित राखहु । ब्रजनन्दन बिलखाय , भाखत साखी दैं सियहिं । पाहि पाहि भगवन्त , अब सुधि लीजै दास की । दीजै दरस तुरन्त , करिये कृतारथ दीन जन । मांगत दोउ कर जोरि , अभै दान तुम सन सदा । बारहि बार निहोरि , कहत करहु फुर मो वचन । जो याको चित्त लाय करे , पाठ शुचि प्रेम सों। ताकर सकल बलाय , हरहु दरहु दारुण विपति । दोहा :-” हनुमान लहरी ” पढ़त , हिय धरि पवनकुमार । सुजन दया करि दास पै , छमिहैं चूक अपार । !!!۞!!! 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