December 25, 2018 | Leave a comment भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय १ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (प्रतिसर्गपर्व — प्रथम भाग) अध्याय – १ सत्ययुग के राजवंश का वर्णन “नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् । देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥” ‘भगवान् नर-नारायण के अवतार-स्वरुप भगवान् श्रीकृष्ण एवं उनके सखा नरश्रेष्ठ अर्जुन, उनकी लीलाओं को प्रकट करनेवाली भगवती सरस्वती तथा उनके चरित्रों का वर्णन करनेवाले वेदव्यास को नमस्कार कर अष्टादश पुराण, रामायण और महाभारत आदि जय नाम से व्यपदिष्ट ग्रन्थों का वाचन करना चाहिये ।’ महामुनि आचार्य शौनकजी ने पूछा — मुने ! ब्रह्मा की आयु के उत्तरार्ध में भविष्य नाम के महाकल्प में प्रथम वर्ष के तीसरे दिन वैवस्वत नामक मन्वन्तर के अठ्ठाइसवें सत्ययुग में कौन-कौन राजा हुए ? आप उनके चरित्र तथा राज्यकाल का वर्णन करें । सूतजी बोले — श्वेतवाराहकल्प में ब्रह्मा के वर्ष के तीसरे दिन सातवें मुहूर्त के प्रारंभ होने पर महाराज वैवस्वत मनु उत्पन्न हुए । उन्होंने सरयू नदी के तट पर दिव्य सौ वर्षों तक तपस्या की और उनकी छींक से उनके पुत्र राजा इक्ष्वाकु का जन्म हुआ ।ब्रह्मा के वरदान से उन्होंने दिव्य ज्ञान की प्राप्ति की । राजा इक्ष्वाकु भगवान् विष्णु के परम भक्त थे । उन्हीं की कृपा से उन्होंने छत्तीस हजार वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र विकुक्षि हुए, अपने पिता इक्ष्वाकु से सौ वर्ष कम अर्थात् पैंतीस हजार नौ सौ वर्षों तक राज्य करके वे स्वर्ग पधार गये । उनके पुत्र रिपुञ्जय हुए और उन्होंने भी पिता विकुक्षि से सौ वर्ष कम अर्थात् पैंतीस हजार आठ सौ वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र अनेना हुए, उन्होंने पैंतीस हजार छ: सौ वर्षों तक राज्य किया । अनेना के पुत्र पृथु नाम से विख्यात हुए । उन्होंने पैंतीस हजार पाँच सौ वर्षों तक राज्य किया और उनके पुत्र विष्वगश्व हुए, उन्होंने पैंतीस हजार चार सौ वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र अद्रि हुए, उन्होंने पैंतीस हजार तीन सौ वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र भद्राश्व हुए, जिन्होंने पैंतीस हजार दो सौ वर्षों तक राज्य किया । राजा भद्राश्व के पुत्र युवनाश्व हुए, उन्होंने पैंतीस हजार एक सौ वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र श्रावस्त हुए । (इन्होने श्रावस्ती नाम की नगरी बसायी थी ।) उस समय सत्ययुग में समग्र भारतवर्ष में धर्म अपने तप, शौच (ज्ञान), दया तथा सत्य चारों चरणों से मनुस्मृति (१ । ८६)—में तप, ज्ञान, यज्ञ तथा दान—ये धर्म के चार पाद बताये गये हैं विद्यमान था । इन सभी इक्ष्वाकुवंशी राजाओं ने उदयाचल से अस्ताचल-पर्यन्त सम्पूर्ण पृथ्वी पर निति एवं धर्मपूर्वक राज्य किया । महाराज श्रावस्त ने पैंतीस हजार वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र बृहदश्व हुए, उन्होंने चौंतीस हजार नौ सौ वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र कुवलयाश्व हुए, उन्होंने चौंतीस हजार आठ सौ वर्षों तक राज्य किया ।महाराज कुवलयाश्व के पुत्र दृढाश्व हुए, जिन्होंने अपने पिता से एक हजार वर्ष कम अर्थात् तैंतीस हजार आठ सौ वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र निकुम्भक हुए, उन्होंने पिता से एक हजार वर्ष कम अर्थात् बत्तीस हजार आठ सौ वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र संकटाश्व हुए, उन्होंने एक हजार वर्ष कम अर्थात् इकतीस हजार आठ सौ वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र प्रसेनजित् हुए, उन्होंने तीस हजार आठ सौ वर्षों तक राज्य किया । इसके बाद रवणाश्व हुए, उन्होंने उनतीस हजार आठ सौ वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र मान्धाता हुए, उन्होंने अपने पिता से एक सौ वर्ष कम अर्थात् उनतीस हजार सात सौ वर्षों तक राज्य किया । महाराज मान्धाता के पुत्र पुरुकुत्स हुए, उन्होंने उनतीस हजार छः सौ वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र त्रिंशदश्व हुए, उनके रथ में तीस श्रेष्ठ घोड़े जुटे रहते थे, इसीलिये वे त्रिंशदश्व के नाम से विख्यात हुए । राजा त्रिंशदश्व के पुत्र अनरण्य हुए, उन्होंने अठ्ठाईस हजार वर्षों तक शासन किया । महाराज अनरण्य के पुत्र पृशदश्व हुए, वे छः हजार वर्षों तक राज्य कर के अन्त मे पितृलोक को चले गये । अनन्तर हर्यश्व नाम के राजा हुए, उन्होंने राजा पृशदश्व से एक हजार वर्ष कम अर्थात् पाँच हजार वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र वसुमान् हुए, उन्होंने उनसे एक हजार वर्ष कम अर्थात् चार हजार वर्षों तक राज्य किया । तदनन्तर उनको त्रिधन्वा नाम का पुत्र हुआ, उसने अपने पिता से एक हजार वर्ष कम अर्थात् तीन हजार वर्षों तक राज्य किया । तब तक भारत में सत्ययुग का द्वितीय पाद समाप्त हो गया । महाराज त्रिधन्वा के पुत्र त्रथ्यारुणि हुए, वे अपने पिता से एक हजार वर्ष कम अर्थात् दो हजार वर्षों तक राज्य करके स्वर्ग चले गये । उनके पुत्र त्रिशंकु हुए और उन्होंने मात्र एक हजार वर्ष राज्य किया । छद्म के कारण राजा त्रिशंकु हीनता को प्राप्त हुए । उनके पुत्र हरिश्चन्द्र हुए, इन्होने बीस हजार वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र रोहित हुए, उन्होंने पिता के समान ही राज्य किया । उनके पुत्र का नाम हारित था । राजा हारित ने भी पिता के समान ही दीर्घकालतक राज्य किया । उनके पुत्र चंचुभूप हुए । पिता के तुल्य वर्षों तक उन्होंने राज्य किया । उनके पुत्र विजय हुए । इन्होंने भी पिता के तुल्य वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र रुक हुए, उन्होंने भी पिता के तुल्य वर्षों तक राज्य किया । ये सभी राजा विष्णुभक्त थे एवं इनकी सेना बहुत विशाल थी । उनके राज्य में मणि-स्वर्ण की समृद्धि तथा प्रचुर धन-सम्पति सभी को सुलभ थी । उस समय सत्ययुग का पूर्ण धर्म विद्यमान था । सत्ययुग के तृतीय चरण के मध्य में राजा रुक के पुत्र महाराज सगर हुए । वे शिवभक्त तथा सदाचार-सम्पन्न थे । उनके (एक रानी से उत्पन्न साठ हजार) पुत्र सागर नाम से प्रसिद्ध हुए । मुनियों ने तीस हजार वर्षों तक उनका राज्य काल माना है । (कपिल मुनि के शाप से ) सगर पुत्र नष्ट हो गये । दूसरी रानी से असमंजस नाम का एक पुत्र हुआ । उनके पुत्र अंशुमान् हुए । उनके दिलीप और दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, जिनके द्वारा पृथ्वी पर लायी गयी गङ्गा भागीरथी नाम से प्रसिद्ध हुई । भागीरथ के पुत्र श्रुतसेन हुए । महाराज सगर से श्रुतसेन तक सभी राजा शैव थे । श्रुतसेन के पुत्र नाभाग तथा नाभाग के पुत्र राजा अम्बरीष अत्यन्त प्रसिद्ध विष्णुभक्त हुए, जिनकी रक्षा में सुदर्शन-चक्र रात-दिन नियुक्त रहता था । तब तक भारत में सत्ययुग का तीसरा चरण समाप्त हो चुका था । सत्ययुग के चतुर्थ चरण में महाराज अम्बरीष के पुत्र सिन्धुद्वीप हुए, उनके पुत्र अयुताश्व, अयुताश्व के पुत्र ऋतुपर्ण, उनके पुत्र सर्वकाम तथा उनके पुत्र कल्माषपाद हुए । कल्माषपाद के पुत्र सुदास को वसिष्ठजी के आशीर्वाद से मदयन्तीसे उत्पन्न अश्मक (सौदास) नामका पुत्र प्राप्त हुआ । सौदास तक के ये सात राजा वैष्णव कहे गये हैं । गुरु के शाप से सौदास ने अङ्गोंसहित अपना सम्पूर्ण राज्य गुरु को समर्पित कर दिया । गोकर्ण लिङ्ग-भक्त शैव कहा जाता है । राजा अश्मक के पुत्र हरिवर्मा साधुओं के पूजक थे । उनके पुत्र दशरथ (प्रथम) हुए, उनके पुत्र दिलीप (प्रथम) हुए, उनके पुत्र विश्वासह हुए, उन्होंने दस हजार वर्षों तक राज्य किया । उनके अधर्म-आचरण के कारण उस समय सौ वर्षों तक भयंकर अनावृष्टि हुई, जिससे उनका राज्य विनष्ट हो गया और रानी के आग्रह करने पर महर्षि वसिष्ठ ने यत्न कर यज्ञ के द्वारा खट्वाङ्ग नामक पुत्र उत्पन्न किया । राजा खट्वाङ्ग ने शस्त्र धारण कर इन्द्र की सहायता से तीस हजार वर्षों तक राज्य किया । तदनन्तर देवताओं से वर प्राप्त कर मुक्ति प्राप्त की । उनके पुत्र दीर्घबाहु हुए, उन्होंने बीस हजार वर्षों तक राज्य किया । उनके पुत्र सुदर्शन हुए । महामनीषी सुदर्शन ने राजा काशीराज की पुत्री से विवाह कर देवी के प्रसाद से राजाओं को जीतकर धर्मपूर्वक सम्पूर्ण भरतखण्ड पर पाँच हजार वर्षों तक राज्य किया । एक दिन स्वप्न में महाकाली ने राजा सुर्दशन से कहा – ‘वत्स ! तुम अपनी पत्नी के साथ तथा महर्षि वसिष्ठ आदि से समन्वित होकर हिमालय पर जाकर निवास करो; क्योंकि शीघ्र ही भीषण झंझावात के प्रभाव से भरतखण्ड का प्रायः क्षय हो जायगा । पूर्व, पश्चिम आदि दिशाओं के अनेक उपद्वीप झंझावातों के कारण समुद्र के गर्त में विलीन-से हो गये हैं । भारतवर्ष में भी आज के सातवें दिन भीषण झंझावात आयेगा ।’ स्वप्न में भगवती द्वारा प्रलय का निर्देश पाकर महाराज सुदर्शन प्रधान राजाओं, वैश्यों तथा ब्राह्मणों और अपने परिकरों के साथ हिमालय पर चले गये और भारत का बड़ा-सा भूभाग समुद्री-तूफ़ान आदि के प्रभाव से नष्ट हो गया । सम्पूर्ण प्राणी विनष्ट हो गये और सारी पृथ्वी जलमग्न हो गयी । पुनः कुछ समय के अनन्तर भूमि दिखलायी देने लगी । (अध्याय १) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २० Related