December 25, 2018 | Leave a comment भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय २ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (प्रतिसर्गपर्व — प्रथम भाग) अध्याय – २ त्रेतायुग के सूर्य एवं चन्द्र-राजवंशो का वर्णन सूतजी बोले — महामुने ! वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि में बृहस्पतिवार के दिन महाराज सुदर्शन अपने परिकरों के साथ हिमालयपर्वत से पुनः अयोध्या लौट आये । मायादेवी के प्रभाव से अयोध्यापुरी पुनः विविध अन्न-धन से परिपूर्ण एवं समृद्धिसम्पन्न हो गयी । महाराज सुदर्शन ने (राजा सुदर्शन की विस्तृत कथा देवीभागवत के तृतीय स्कन्ध में प्राप्त होती है।) दस हजार वर्षों तक राज्यकर नित्यलोक को प्राप्त किया । उनके पुत्र दिलीप (द्वितीय) हुए, उन्हें नन्दिनी गौ के वरदान से श्रेष्ठ रघु नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ । राजा दिलीप ने दस ह़जार वर्षों तक भली-भाँति राज्य किया । दिलीप के बाद पिता के ही समान महाराज रघु ने भी राज्य किया । भृगुनंदन ! त्रेता में ये सूर्यवंशी क्षत्रिय रघुवंशी नामसे प्रसिद्ध हुए । ब्राह्मण के वरदान से उनके अज नामक पुत्र हुआ, उन्होंने भी पिता के समान ही राज्य किया । उनके पुत्र महाराज दशरथ (द्वितीय) हुए, दशरथ के पुत्र रूप में (भगवान् विष्णु के अवतार) स्वयं राम उत्पन्न हुए । उन्होंने ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य किया । श्रीराम के पुत्र कुश ने दस हजार वर्षों तक राज्य किया । कुश के पुत्र अतिथि, अतिथि के निषध, निषध के पुत्र नल ये नल समयन्ती के पति अत्यन्त प्रसिद्ध महाराज नल से भिन्न हैं । हुए, जो शक्ति के परम उपासक थे । नल के पुत्र नभ, नभ के पुत्र पुण्डरिक, उनके पुत्र क्षेमधन्वा, क्षेमधन्वा के देवानीक और देवानीक के पुत्र अहीनग तथा अहीनग के पुत्र कुरु हुए । इन्होनें त्रेता में सौ योजन विस्तार का कुरुक्षेत्र बनाया । कुरु के पुत्र पारियात्र, उनके बलस्थल, बलस्थल के पुत्र उक्थ, उनके वज्रनाभि, वज्रनाभि के पुत्र शङ्खनाभि और उनके व्युत्थनाभि हुए । व्युत्थनाभि के पुत्र विश्वपाल, उनके स्वर्णनाभि और स्वर्णनाभि के पुत्र पुष्पसेन हुए । पुष्पसेन के पुत्र ध्रुवसन्धि तथा ध्रुवसन्धि के पुत्र अपवर्मा हुए । अपवर्मा के पुत्र शीघ्रगन्ता, शीघ्रगन्ता के पुत्र मरुपाल और उनके पुत्र प्रसुश्रुत हुए । प्रसुश्रुत के पुत्र सुसन्धि हुए । उन्होंने पृथ्वी के एक छोर से दुसरे छोर तक राज्य किया । उनके पुत्र अमर्षण हुए । उन्होंने पिता के समान राज्य किया । उनके पुत्र महाश्व, महाश्व के पुत्र बृहद्वल और इनके पुत्र बृहदैशान हुए । बृहदैशान के पुत्र मुरुक्षेप, उनके वत्सपाल और उनके पुत्र वत्सव्यूह हुए । वत्सव्यूह के पुत्र राजा प्रतिव्योम हुए । उनके पुत्र देवकर और उनके पुत्र सहदेव हुए । सहदेव के पुत्र बृहदश्व, उनके भानुरत्न तथा भानुरत्न के सुप्रतीक हुए । उनके मरूदेव अन्य सभी पुराणों में सूर्यवंश का यहीं तक वर्णन है । पुराणों के अनुसार मरु देवापि के साथ कलाप ग्राम में निवास कर साधना कर रहे हैं, किंतु इस पुराण के अनुसार सूर्यवंश का वर्णन सुदूर आगे तक हुआ है, जो प्रायः कलियुग तक पहुँच जाता है। और मरूदेव के पुत्र सुनक्षत्र हुए । सुनक्षत्र के पुत्र केशीनर, उनके पुत्र अन्तरिक्ष और अन्तरिक्ष के पुत्र सुवार्णाङ्ग हुए । सुवार्णाङ्ग के पुत्र अमित्रजित्, उनके पुत्र बृहद्राज और बृहद्राज के पुत्र धर्मराज हुए । धर्मराज के पुत्र कृतञ्जय और उनके पुत्र रणञ्जय हुए । रणञ्जय के पुत्र सञ्जय, उनके पुत्र शाक्यवर्धन और शाक्यवर्धन के पुत्र क्रोधदान हुए । क्रोधदान के पुत्र अतुलविक्रम, उनके पुत्र प्रसेनजित् और प्रसेनजित् के पुत्र शूद्रक हुए । शूद्रक के पुत्र सुरथ हुए । ये सभी महाराज रघु के वंशज तथा देवी की आराधना में रत रहते थे । यज्ञ-यागादि में तत्पर रहकर अन्त में इन सभी राजाओं ने स्वर्गलोक प्राप्त किया । जो बुद्ध के वंशज हुए, ये सब पूर्ण शुद्ध क्षत्रिय नहीं थे ।त्रेतायुग के तृतीय चरण के प्रारम्भ से नवीनता आ गयी । देवराज इन्द्र ने रोहिणी-पति चन्द्रमा को पृथ्वी पर भेजा । चन्द्रमा ने तीर्थराज प्रयाग को अपनी राजधानी बनाया । वे भगवान् विष्णु तथा भगवान् शिव की आराधना में तत्पर रहे । भगवती महामाया की प्रसन्नता के लिये उन्होंने सौ यज्ञ किये और अट्ठारह हजार वर्षों तक राज्य कर वे पुनः स्वर्गलोक चले गये । चन्द्रमा के पुत्र बुध हुए । बुध का विवाह इला के साथ विधिपूर्वक हुआ, जिससे पुरुरवा की उत्पत्ति हुई । राजा पुरुरवा ने चौदह हजार वर्षों तक पृथ्वी पर शासन किया । उनको भगवान् विष्णु की आराधना में तत्पर रहनेवाला आयु नाम का एक धर्मात्मा पुत्र उत्पन्न हुआ । महाराज आयु छत्तीस हजार वर्षों तक राज्यकर गन्धर्वलोक को प्राप्त करके पुनः स्वर्ग में देवता के समान आनन्द भोग रहे हैं । आयु के पुत्र हुए नहुष, जिन्होंने अपने पिता के समान ही धर्मपूर्वक पृथ्वी पर राज्य किया । तदनन्तर उन्होंने इन्द्रत्व को प्राप्तकर तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया । फिर बाद में महर्षि दुर्वासा के शाप से महाभारत आदिमें ये अगस्त्य ऋषि के शाप से अजगर हुए थे । राजा नहुष अजगर हो गये । उनके पुत्र ययाति हुए । ययाति के पाँच पुत्र हुए, जिनमे से तीन पुत्र म्लेच्छ देशों के शासक हो गये इनका पूरा विवरण मत्स्यपुराण के प्रारम्भिक अध्यायों में मिलता है ।। शेष दो पुत्रों ने आर्यत्व को प्राप्त किया । उनमें यदु ज्येष्ठ थे और पुरु कनिष्ठ । उन्होंने तपोबल तथा भगवान् विष्णु के प्रसाद से एक लाख वर्षों तक राज्य किया, अनन्तर वे वैकुण्ठ चले गये ।यदु के पुत्र क्रोष्टु ने साठ हजार वर्षों तक राज्य किया । क्रोष्टु के पुत्र वृजिनघ्न हुए, उन्होंने बीस हजार वर्षों तक पृथ्वी पर शासन किया । उनको स्वाहार्चन नाम का एक पुत्र हुआ । उनके पुत्र चित्ररथ हुए और उनके अरविन्द हुए । अरविन्द को विष्णु-भक्ति-परायण श्रवस् नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ । उनके तामस हुए, तामस के उशन नामका पुत्र हुआ । उनके पुत्र शितांशुक हुए तथा शितांशुक के पुत्र कमलान्शु हुए । उनके पुत्र पारावत हुए, उन्हें ज्यामघ नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ । ज्यामघ के पुत्र विदर्भ हुए । उनको क्रथ नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ । उनके पुत्र कुन्तिभोज हुए । कुन्तिभोज ने पाताल में निवास करनेवाली पुरु दैत्य की पुत्री से विवाह किया, जिससे वृषपर्वण नाम का पुत्र हुआ । उनके पुत्र मायाविद्य हुए, जो देवी के भक्त थे । उन्होंने प्रयाग के प्रतिष्ठानपुर (झूँसी)- में दस हजार वर्षों तक राज्य किया फिर वे स्वर्ग सिधार गये । मायाविद्य के पुत्र जनमेजय (प्रथम) हुए और उनका पुत्र प्रचिन्वान् हुआ । प्रचिन्वान् के पुत्र प्रवीर हुए । उनके पुत्र नभस्य हुए, नभस्य के पुत्र भवद और उनके सुद्युम्न नाम का पुत्र हुआ । सुद्युम्न के पुत्र बाहुगर, उनके पुत्र संयाति और संयाति के पुत्र धनयाति हुए । धनयाति के पुत्र ऐन्दाश्व, उनके पुत्र रन्तिनर और रन्तिनर के पुत्र सुतपा हुए । सुतपा के पुत्र संवरण हुए, जिन्होंने हिमालय पर्वत पर तपस्या करने की इच्छा की और सौ वर्षों तक तपस्या करने पर भगवान् सूर्य ने अपनी तपती नाम की कन्या से इनका विवाह कर दिया । संतुष्ट होकर राजा संवरण सूर्यलोक चले गये । तदनन्तर काल के प्रभाव से त्रेतायुग का अन्त समय उपस्थित हो गया, जिससे चारों समुद्र उमड़ आये और प्रलय का दृश्य उपस्थित हो गया । दो वर्षों तक पृथ्वी पर्वतों सहित समुद्र में विलीन रही । झंझावातों के प्रभाव से समुद्र सुख गया, फिर महर्षि अगस्त्य के तेज से भूमि स्थलीभुत होकर दीखने लगी और पाँच वर्ष के अंदर पृथ्वी, वृक्ष, दुर्वा आदि से सम्पन्न हो गयी । भगवान् सूर्यदेव की आज्ञा से महाराज संवरण महारानी तपती, महर्षि वसिष्ठ और तीनों वर्णों के लोगों के साथ पुनः पृथ्वी पर आ गये । (अध्याय २) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २० 5. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय १ Related