भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६०
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – १६०
ब्रह्मादि देवताओं द्वारा सूर्यके विराट्-रूप का दर्शन

महाराज शतानीक ने कहा — मुने ! आपने भगवान् सूर्य के अद्भुत चरित्र का वर्णन किया है, जिनका पूजन ब्रह्मा आदि देवता प्रतिदिन विधिपूर्वक करते रहते हैं तथा जिस ब्रह्म की ब्रह्मा, विष्णु, शिव और सभी देवता आराधना करते रहते हैं, उसे आप बतायें ।om, ॐसुमन्तु मुनि बोले — राजन् ! एक बार भगवान् विष्णु और ब्रह्माजी हिमाचल पर गये । यहाँ उन्होंने देखा कि भगवान् शिव सिर पर अर्धचन्द्र धारण किये भगवान् विवस्वान् की पूजा कर रहे हैं । ब्रह्मा और विष्णु को यहाँ आये देखकर शिवजी ने उन्हें प्रणाम किया और विधिपूर्वक उनकी पूजा की तथा उनसे कहा — ‘भगवन् ! आपलोगों ने भगवान् सूर्य की आराधना कर उनके किस स्वरूप का दर्शन किया है । मुझे उनके परम रूप को जानने की बड़ी ही अभिलाषा है, उसे आप बतायें ।

इसपर वे दोनों बोले — हमलोगों ने भी उस परम अद्भुत रुप को नहीं देखा है । हमें उस परम अद्भुत रूप की आराधना के लिये सुवर्ण के समान उज्ज्वल पवित्र उदयगिरि पर एक साथ चलना चाहिये । अनन्तर तीनों देव तीव्र गति से पर्वतश्रेष्ठ उदयाचल पर गये और वहाँ भगवान् सूर्यनारायण की विधिपूर्वक आराधना करने लगे । सहस्रों दिव्य वर्ष तक पद्मासन लगाकर ब्रह्माजी निश्चल रूप से स्थिर हो, ऊपर हाथ करके त्रिलोचन भगवान् शङ्कर और सिर नीचे करके पञ्चाग्नि का सेवन करते हुए भगवान् विष्णु सूर्यदेव का दर्शन प्राप्त करने के लिये कठोर तप करने लगे । ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी के उत्तम तप से संतुष्ट हो भगवान् सूर्यनारायण ने प्रकट होकर उनसे कहा — ‘आपलोग क्या चाहते हैं ? मैं आपलोगों से संतुष्ट हूँ और वर देने के लिये उपस्थित हुआ हूँ ।उन्होंने कहा — गोपते ! हमलोग आपके दर्शन से कृतकृत्य हो गये हैं । पहले ही आपकी आराधना करके हमलोगों ने शुभ वरों को प्राप्त कर लिया है । आपकी दया से हमलोग उत्पत्ति, स्थिति और विनाश करने में समर्थ हैं, इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है, किंतु देवदेवेश ! हमलोग आपके परम दुर्लभ रूप का दर्शन करना चाहते हैं ।

उनके वचनों को सुनकर लोकपूजित भगवान् सूर्य ने उन्हें अपना परम दुर्लभ तेजस्वी अद्भुत विराट् रूप दिखलाया । इनके अनेक सिर तथा अनेक मुख हैं, सभी देव तथा सभी लोक उसमें स्थित हैं । पृथ्वी पैर, स्वर्ग सिर, अग्नि नेत्र, पैर की अँगुलियाँ पिशाच, हाथको अँगुलियाँ गुह्यक, विश्वेदेव जंघा, यज्ञ कुक्षि, अप्सरागण कैश तथा तारागण ही इनके रोम-रूप में हैं । दसों दिशाएँ इनके कान और दिक्पालगण इनकी भुजाएँ हैं । वायु नासिका, प्रसाद ही क्षमा तथा धर्म ही मन है । सत्य इनकी वाणी, देवी सरस्वती जिह्वा, ग्रीवा महादेवी अदिति और तालु वीर्यवान् रुद्र हैं । स्वर्ग का द्वार नाभि, वैश्वानर अग्नि मुख, भगवान् ब्रह्मा हृदय और उदर ऋर्षि कश्यप हैं, पीठ आठों वसु तथा सभी संधियाँ मरुद्-देव हैं । समस्त छन्द दाँत एवं ज्योतियाँ निर्मल प्रभा हैं । महादेव रुद्र प्राण, कुक्षियाँ समुद्र हैं । इनके उदर में गन्धर्व और नाग हैं । लक्ष्मी, मेधा, धृति, कान्ति तथा सभी विद्याएँ इनके कटिदेश में स्थित हैं । इनका ललाट ही परमात्मा का परमपद है । दो स्तन, दो कुक्षि और चार वेद ये आठ ही इनके यज्ञ हैं ।सुमन्तु मुनि बोले — राजन् ! सर्वदेवमय भगवान् सूर्य के इस विराट् रूप को देखकर ब्रह्मा, शिव और भगवान् विष्णु परम विस्मित हो गये । उन्होंने बड़ी श्रद्धा से भगवान् सूर्य को प्रणाम किया ।

भगवान् सूर्य ने कहा — देवो ! आप सबको कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर आप सबके कल्याण के लिये मैंने योगियों के द्वारा समाधि-गम्य अपने इस विराट्-रूप को दिखलाया है । इसपर वे बोले — भगवन् ! आपने जो कहा है, उसमें कोई भी संदेह नहीं है । इस विराट्-रुप का दर्शन पाना योगियों के लिये भी दुर्लभ है । आपकी आराधना करने तथा आपका दर्शन करने पर कुछ अप्राप्य नहीं है । आपके समान इस लोक में दूसरा कोई देव नहीं है ।

राजन् ! ब्रहादि देवता परम उत्कृष्ट इस रूप का दर्शन कर हर्षित हो गये और उन्होंने भगवान् सूर्य को पूजन-आराधन कर परम सिद्धि प्राप्त की ।
(अध्याय १६०)

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