December 18, 2018 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६१ से १६२ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व) अध्याय – १६१ से १६२ सूर्योपासनाका फल शतानीक ने पूछा — मुने ! आपने भगवान् सूर्य के विषय में जो कहा, वह सत्य ही है, संसार के मूल कारण तथा परम दैवत भगवान् सूर्य ही हैं, सभी को यही तेज प्रदान करते हैं । भगवान् सूर्यनारायण के पूजन से जो फल प्राप्त होता है, आप उसे बतलाने की कृपा करें ।सुमन्तु मुनि बोले — राजन् ! जो व्यक्ति सर्वदेवमय भगवान् सूर्य की प्रतिष्ठा कर पूजन करता है, वह अमरत्व तथा भगवान् सूर्य का सामीप्य प्राप्त कर लेता है । जो व्यक्ति भगवान् सूर्य का तिरस्कार कर सभी देवताओं का पूजन करता है, उस व्यक्ति के साथ भाषण करनेवाला व्यक्ति भी नरकगामी होता है । जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सूर्यदेव की प्रतिष्ठा कर पूजन-अर्चन करता है, उसे यज्ञ, तप, तीर्थयात्रा आदिकी अपेक्षा कोटि गुना अधिक फल प्राप्त होता है तथा उसके मातृकुल, पितृकुल एवं स्त्रीकुल—इन तीनों का उद्धार हो जाता है और वह इन्द्रलोक मे पूजित होता है तथा वहाँ ज्ञानयोग के आश्रयण से वह मुक्ति प्राप्त कर लेता है अथवा जो राज्य चाहता है वह दूसरे जन्म में सप्तद्वीपवती वसुमती का राजा होता है । जो व्यक्ति मिट्टी का सर्वदेवमय व्योम बनाकर भगवान् सूर्य का पूजन-अर्चन करता है, वह तीनों लोकों में पूजित एवं इस लोक में धन-धान्य से परिपूर्ण होकर अन्त में सूर्यलोक को प्राप्त कर लेता है ।जो व्यक्ति भगवान् सूर्य के पिष्टमय व्योम की रचनाकर गन्ध, धूप, पुष्प, माला, चन्दन, फल आदि उपचारों से पूजा करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है और कोई क्लेश नहीं पाता । वह भगवान् सूर्य के समान प्रतापपूर्ण हो अव्यय पद को प्राप्त करता है । अपनी शक्ति के अनुसार भक्तिपूर्वक भगवान् सूर्य का मन्दिर निर्माण कराने वाला स्वर्णमय विमान पर आरूढ़ होकर भगवान् सूर्य के साथ विहार करता है । यदि साधनसम्पन्न होनेपर भी श्रद्धा-भक्ति से शून्य होकर मन्दिर आदिका निर्माण करता है तो उसे कोई फल नहीं होता । इसलिये अपने धन का तीन भाग करना चाहिये, उसमे से दो भाग धर्म तथा अर्थोपार्जन में व्यय करें और एक भाग से जीवनयापन करे । धन-सम्पत्ति से सम्पन्न रहने पर भी यदि कोई बिना भक्ति के अपना सर्वस्व भगवान् सूर्य के लिये अर्पण कर दे, तब भी वह धर्म का भाग नहीं होता, क्योंकि इसमें भक्ति की ही प्रधानता है । ‘सर्वस्वनपि यो दद्यादर्के भक्तिविवर्जितः । न तेन धर्मभागी स्याद्भक्तिरेवात्र कारणम् ॥ (ब्राह्मपर्व १६२ । २९) मानव संसार में दुःख और शोक से व्याकुल होकर तबतक भटकता है, जबतक भगवान् सूर्य की पूजा नहीं करता । संसार में आसक्त प्राणियों को भगवान् सूर्य के अतिरिक्त और कौन ऐसा देवता है जो बन्धन से छुटकारा दिला सके । (अध्याय १६१-१६२) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२ 2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3 3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४ 4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५ 5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६ 6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७ 7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९ 8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५ 9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६ 10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७ 11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८ 12. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९ 13. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २० 14. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१ 15. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २२ 16. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २३ 17. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २४ से २६ 18. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २७ 19. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २८ 20. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २९ से ३० 21. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३१ 22. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३२ 23. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३३ 24. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३४ 25. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३५ 26. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३६ से ३८ 27. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३९ 28. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४० से ४५ 29. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४६ 30. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४७ 31. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४८ 32. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४९ 33. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५० से ५१ 34. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५२ से ५३ 35. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५४ 36. भविष्यपुराण – 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