December 20, 2018 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८६ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व) अध्याय – १८६ सौर-धर्म में शुद्धि-प्रकरण भगवान् भास्कर ने कहा — खगाधिप ! ब्राह्मणों को नित्य पवित्र तथा मधुरभाषी होना चाहिये, उन्हें प्रतिदिन स्नानादि से पवित्र हो चन्दनादि सुगन्धित द्रव्यों को धारणकर देवताओं का पूजन आदि करना चाहिये । सूर्य को निष्प्रयोजन नहीं देखना चाहिये और नग्न स्त्री को भी नहीं देखना चाहिये । मैथुन से दूर रहना चाहिये । जल में मूत्र तथा विष्ठा का परित्याग नहीं करना चाहिये । शास्त्रोक्त नियमों के अनुसार कर्म करने चाहिये । शास्त्र-वर्णित कर्मानुष्ठान के अतिरिक्त कोई भी व्रतादि नहीं करने चाहिये । खगाधिपते ! अभक्ष्य-भक्षण सभी वर्गों के लिये वर्जित है । द्रव्य की शुद्धि होनेपर ही कर्म की शुद्धि होती है अन्यथा कर्म के फल की प्राप्ति में संशय ही बना रहता है । जाति से दुष्ट, क्रिया से दुष्ट, काल से दुष्ट, संसर्ग से दुष्ट, आश्रय से दुष्ट तथा सहृल्लेख (स्वभावतः निन्दित एवं अभक्ष्य) पदार्थ में अथवा दूषित हृदय के एवं कपटी व्यक्ति के स्वभाव में परिवर्तन नहीं होता । लहसुन, गाजर, प्याज, कुकुरमुत्ता, बैगन (सफेद) तथा मूली (लाल) आदि जात्या दूषित हैं । इनका भक्षण नहीं करना चाहिये । जो वस्तु क्रिया के द्वारा दूषित हो गयी हो अथवा पतित के संसर्ग से दूषित हो गयी हो, उसका प्रयोग न करे । अधिक समय तक रखा गया पदार्थ कालदुषित कहलाता है, वह हानिकर होता है, पर दही तथा मधु आदि पदार्थ कालदूषित नहीं होते । सुरा, लहसुन तथा सात दिन के अंदर व्यायी हुई गाय के दूध से युक्त पदार्थ और कुत्ते द्वारा स्पर्श किये गये पदार्थ संसर्ग-दुष्ट कहे जाते हैं । इन पदार्थों का परित्याग करना चाहिये । शूद्र से तथा विकलाङ्ग आदि से स्पृष्ट पदार्थ आश्रय-दूषित कहा जाता हैं । जिस वस्तु के भक्षण करने मन में स्वभावतः घृणा उत्पन्न हो जाती है, जैसे पुरीष (विष्ठा) के प्रति स्वभावतः घृणा उत्पन्न होती है उसे ग्रहण नहीं करना चाहिये । वह सहृल्लेख दोषयुक्त पदार्थ कहा गया है । खीर, दूध, पाकादि का भक्षण शास्त्रोक्त विधि के अनुसार ही करना चाहिये ।सपिण्ड में दस दिन, बारह दिन अथवा पंद्रह दिन और एक मास में प्रेत-शुद्धि हो जाती है । सूतकाशौच तथा मरणाशौच में दस दिन के भीतर किसी व्यक्ति के यहाँ भोजन नहीं करना चाहिये । दशगात्र एवं एकादशाह के बीत जाने पर बारहवें दिन स्नान करने से शुद्धि हो जाती है । संवत्सर पूर्ण हो आने पर स्नान-मात्र से ही शुद्धि हो जाती है । सपिण्ड में जन्म और मृत्यु होने पर अशौच लगता है । दाँत आने तक बालक की मृत्यु हो जाने पर सद्यः शुद्धि हो जाती है । चूड़ाकरण के पहले बालक की मृत्यु हो जानेपर एक दिन-रात की अशुद्धि होती है तथा चूडाकरण के बाद और यज्ञोपवीत लेने के पहले मृत्यु होने पर त्रिरात्र अशुद्धि होती है और इसके अनन्तर दशरात्र की अशुद्धि होती है । गर्भ-स्त्राव हो जाने पर तीन रात्रि के पश्चात् जल से स्नान करने के बाद शुद्धि होती है । असपिण्डी (एवं सगोत्री) – की मृत्यु होने पर तीन अहोरात्र के बाद शुद्धि होती है । यदि केवल शव – यात्रा करता है तो स्नानमात्र से शुद्धि हो जाती है । द्रव्य की शुद्धि आग में तपाने, मिट्टी और जल से धोने तथा मल हटाने, प्रक्षालन करने, स्पर्श और प्रोक्षण करने से होती है । द्रव्य-शुद्धि के पश्चात् स्नान करने से शुद्धि होती हैं । प्रातःकाल का स्नान नित्य-स्नान हैं, ग्रहण में स्नान करना काम्यस्नान है तथा क्षौर और शौचादि के पश्चात् जो स्नान किया जाता हैं वह नैमित्तिक स्नान है, इससे पापादि की निवृत्ति होती है । (अध्याय १८६) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२ 2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3 3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४ 4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५ 5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६ 6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७ 7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९ 8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५ 9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६ 10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७ 11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८ 12. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९ 13. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २० 14. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१ 15. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २२ 16. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २३ 17. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २४ से २६ 18. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २७ 19. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २८ 20. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २९ से 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