December 16, 2018 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ११७ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व) अध्याय – ११७ भोजकों की उत्पत्ति तथा उनके लक्षणों का वर्णन अरुण ने पूछा — भगवन् ! यह भोजक कौन हैं ? किसका पुत्र हैं ? इसने ऐसा कौन-सा उत्तम कर्म किया है, जिस कारण ब्राह्मण आदि वर्णों को छोड़कर आपका इसपर इतना अनुग्रह हुआ ? आप कृपाकर सब मुझे बतायें ।आदित्य बोले — महामति वैनतेय ! तुमने बहुत सुन्दर बात पूछी है । इसके उत्तर में मैं जो कहता है, उसे तुम सावधान होकर सुनो । अपनी पूजा के निमित्त ही मैंने अपने तेज से भोजकों की उत्पत्ति की है । ये वर्णतः ब्राह्मण हैं और मेरी पूजा के लिये अनुष्ठान में तत्पर रहते हैं । ये भोजक मुझे अति प्रिय हैं । प्राचीन काल में शाकद्वीप के स्वामी राजा प्रियव्रत के पुत्र ने विमान के समान एक भव्य सूर्य-मन्दिर बनवाया और उसमें स्थापित करने के लिये सभी शुभ लक्षणों से सम्पन्न सोने की एक दिव्य सूर्य की प्रतिमा भी बनवायी । अब राजा को यह चिन्ता होने लगी कि मन्दिर तथा प्रतिमा की प्रतिष्ठा कौन कराये ? उन्हें कोई योग्य व्यक्ति नहीं दिखायी दिया । अतः वह राजा मेरी शरण में आया । अपने भक्त को चित्ताग्रस्त देखकर मैंने उसे प्रत्यक्ष दर्शन दिया और पूछा—’वत्स ! तुम क्या विचार कर रहे हो, तुम क्यों चिन्तित हो, शीघ्र ही अपनी चिन्ता का कारण बताओ । तुम दुःखी मत होओ, मैं तुम्हारे अत्यन्त दुष्कर कर्मों को भी सम्पन्न कर दूंगा ।’ इस पर राजा ने प्रसन्न होकर कहा— ‘प्रभो ! मैंने बड़ी भक्ति एवं श्रद्धा से इस द्वीप में आपका एक विशाल मन्दिर बनवाया है तथा एक दिव्य सूर्य-प्रतिमा भी बनवायी है, मुझे यह चिन्ता सता रही है कि प्रतिष्ठा-कार्य कैसे सम्पन्न हो ?’ राजा के इन वचनों को सुनकर मैंने कहा — ‘राजन् ! मैं अपने तेज से अपनी पूजा करने के लिये मगसंज्ञक ब्राह्मणों की सृष्टि करता हूँ ।’ मेरे ऐसा कहते ही चन्द्रमा के समान श्वेतवर्णवाले आठ बलशाली पुरुष मेरे शरीर से उत्पन्न हो गये । वे सभी काषाय वस्त्र पहिने हुए थे, हाथों में पिटारी और कमल के पुष्प लिये हुए थे तथा साङ्गोपाङ्ग चारों वेदों और उपनिषदों का पाठ कर रहे थे । इनमे से दो पुरुष ललाट से, दो वक्षःस्थल से, दो चरणों से तथा दो पाद से उत्पन्न हुए ।’ उन महात्माओं ने मुझे पिता मानते हुए हाथ जोड़कर मुझसे कहा — ‘हे पिता ! हे लोकनाथ ! हम आपके पुत्र हैं । आपने किसलिये हमें उत्पन्न किया है ? हमें आज्ञा दीजिये । हम सब आपके आदेश का पालन करेंगे ।’ पुत्रों का ऐसा वचन सुनकर मैंने कहा—’तुम सब इस राजा की बात सुनो और ये जैसा कहें वैसा ही करो ।’ पुत्रों से ऐसा कहने के बाद मैंने राजा से कहा— ‘राजन् ! ये मेरे पुत्र हैं, ब्राह्मणों में श्रेष्ठ तथा सर्वदा पूज्य हैं । मेरी प्रतिष्ठा कराने के लिये ये सर्वथा योग्य हैं । इनसे प्रतिष्ठा करवा लो । मन्दिर की प्रतिष्ठा कराकर मन्दिर इन्हें समर्पित कर दो । ये सदा मेरा पूजन किया करेंगे, परंतु देकर फिर इनसे हरण मत करना । मेरे निमित्त जो कुछ धन-धान्य, गृह, क्षेत्र, बाग, ग्राम, नगर आदि मन्दिर में अर्पण करो, उन सबके स्वामी ये भोजक ही होंगे । जैसे पिता द्रव्य का अधिकारी उसका पुत्र होता है, वैसे ही मेरे धन के अधिकारी ये भोजक ही हैं ।’ मेरी आज्ञा पाकर उस राजा ने प्रसन्न हो वैसा ही किया और भोजकों द्वारा प्रतिष्ठा कराकर वह मन्दिर उन्हीं को अर्पित कर दिया । अरुण ! इस प्रकार अपनी पूजा के लिये मैंने अपने शरीर के तेज से भोजको को उत्पन्न किया । ये मेरे आत्मस्वरूप हैं । मेरी प्रीति के लिये जो कुछ भी देना हो यह भोजक को देना चाहिये । परंतु भोजक को दिया हुआ धन कभी वापस नहीं लेना चाहिये । भोजक हमारे सम्पूर्ण धन का स्वामी है । भोजक में ये लक्षण होने चाहिये —वह पहले वेदाध्ययन कर फिर गृहस्थजीवन में प्रवेश करे । नित्य त्रिकाल स्नान करे, दिन-रात्रि में पञ्चकृत्यों इज्या, अभिगमन, उपादान, स्वाध्याय और योग— ये पाँच उपासना के भेद हैं, जिनमें प्रतिमा—पूजन, संध्या-तर्पण, हवन-पूजन, ध्यान, जप एवं सूर्य के चरित्र का पाठ सम्मिलित है। द्वारा मेरा पूजन करे । वेद, ब्राह्मण और देवताओं की कभी निन्दा न करे । नित्य हमारे सम्मुख शङ्खध्वनि करे । छः महीने पुराण सुनने से जैसी प्रसन्नता मुझे होती है, वैसी प्रीति केवल एक बार शङ्खध्वनि श्रवण करने से हो जाती है । इसलिये भोजक को पूजन में नित्य शङ्ख बजाना चाहिये । वे अभोज्य पदार्थ भक्षण नहीं करते हैं, इसलिये भोजक कहलाते हैं और नित्य हमको भोजन कराते हैं, इसलिये भी भोजक कहलाते हैं । वे सदा मग का ध्यान करते रहते हैं, इसलिये मगध कहे जाते हैं। भोजक परम शुद्धि कर अव्यङ्ग धारण किये बिना सदा अपवित्र रहता है । जो अव्यङ्ग धारण किये बिना मेरी पूजा करता है, उसको संतान नहीं होती और मेरी प्रसन्नता भी उसे प्राप्त नहीं होती । भोजक को सिर मुड़ाकर रहना चाहिये, किंतु शिखा अवश्य रखनी चाहिये । रविवार दिन तथा षष्ठी को नक्तव्रत कर सप्तमी को उपवास करना चाहिये तथा संक्रान्ति का व्रत भी करना चाहिये । मेरे समीप त्रिकाल गायत्री का जप करे। भक्ति-श्रद्धापूर्वक मौन होकर मेरा पूजन करे । क्रोध न करे । सदा हमारा नैवेद्य भक्षण करे। वह नैवेद्य भोजक को शुद्ध करने के लिये पवित्र, हविष्यान्न के समान है । मुझे चढ़ा हुआ गन्ध, पुष्य, वस्त्राभूषण आदि बेचे नहीं । स्नान कराये गये जल और निर्माल्य (विसर्जनके बाद देवार्पित वस्तु) तथा अग्नि का उल्लङ्घन न करे । सदा पवित्र रहे, एक बार भोजन करे और क्रोध, अमङ्गल-वचन तथा अशुभ कर्मों को त्याग दे । अरुण ! इस प्रकार के लक्षणों वाला भोजक मुझे बहुत प्रिय है । भोजक का सदा सत्कार करना चाहिये । तुम्हारे ही समान भोज़क भी मुझे बहुत प्रिय हैं । महात्मा परावसु बोले— राजन् ! इस प्रकार अरुण को उपदेश देकर सूर्यनारायण आकाश में भ्रमण करने लगे और अरुण भी यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ । ब्रह्माजी बोले — महामुनि परावसु के मुख से यह कथा सुनकर राजा सत्राजित् और उसकी रानी विमलवती बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ भगवान् सूर्य के मन्दिर थे, उन सबमें मार्जन और उपलेपन कराया । सब मन्दिरों में कथा कहने के लिये पौराणिकों को नियुक्त किया और बहुत-सी दक्षिणा देकर उन्हें संतुष्ट किया । वे विविध उपचारों से भक्तिपूर्वक नित्य सूर्यदेव की पूजा-उपासना करने लगे और अन्त में उन दोनों ने उनकी प्रीति प्राप्त कर उत्तम गति प्राप्त की । (अध्याय ११७) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२ 2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3 3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४ 4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५ 5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६ 6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७ 7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९ 8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५ 9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६ 10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७ 11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८ 12. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९ 13. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २० 14. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१ 15. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २२ 16. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २३ 17. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २४ से २६ 18. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २७ 19. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २८ 20. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २९ से ३० 21. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३१ 22. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३२ 23. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३३ 24. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३४ 25. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३५ 26. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३६ से ३८ 27. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३९ 28. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४० से ४५ 29. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४६ 30. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४७ 31. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४८ 32. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४९ 33. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५० से ५१ 34. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५२ से ५३ 35. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५४ 36. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५५ 37. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५६-५७ 38. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५८ 39. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५९ से ६० 40. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६१ से ६३ 41. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६४ 42. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६५ 43. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६६ से ६७ 44. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६८ 45. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६९ 46. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७० 47. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७१ 48. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७२ से ७३ 49. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७४ 50. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७५ से ७८ 51. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७९ 52. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८० से ८१ 53. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८२ 54. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८३ से ८५ 55. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८६ से ८७ 56. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८८ से ९० 57. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ९१ से ९२ 58. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ९३ 59. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ९४ से ९५ 60. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ९६ 61. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ९७ 62. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ९८ से ९९ 63. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०० से १०१ 64. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०२ 65. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०३ 66. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०४ 67. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०५ से १०६ 68. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०७ से १०९ 69. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ११० से १११ 70. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ११२ 71. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ११३ से ११४ 72. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ११३ से ११४ 73. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ११६ Related