August 9, 2025 | aspundir | Leave a comment श्रीमहाभागवत [देवीपुराण]-अध्याय-64 ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ चौंसठवाँ अध्याय भगवान् शंकर के गायन से विष्णु का द्रवीभूत होना, ब्रह्माजी द्वारा उस द्रवरूप गङ्गा को अपने कमण्डलु में धारण करना, भगवती गङ्गा का द्रवमयी हो पृथ्वी पर आना अथः चतुःषष्टितमोऽध्यायः शिवनारदसंवादे गङ्गाया द्रवरूपवर्णनं श्रीनारदजी बोले — परमेश्वर ! आपने कृपापूर्वक महापापनाशक, पुण्यप्रद, धन्य करनेवाला और दिव्य आख्यान मुझे सुनाया। मैंने जैसा पूछा था — आपने भगवती के उस अद्भुत तथा रहस्यमय तत्त्व को और उन नित्या महामाया के जन्मकर्मादिक की लीलाकथाएँ भी सुनायीं। अब आगे उन भगवती परा प्रकृति के अंश से हिमवान् के घर में उत्पन्न भगवती गङ्गा के दिव्य चरित्र को सुनने की मेरी इच्छा है ॥ १-३ ॥ प्रभो ! जिस प्रकार जगदम्बा की वह एकमात्र पापहारिणी द्रवमयी मूर्ति उत्पन्न हुई और जिस प्रकार वे इस चराचर त्रिलोक को पवित्र करती रहती हैं और जिस प्रकार संसार के उद्धार हेतु उन्होंने पृथ्वी पर अवतार लिया — यह सब तथा अन्य भी उनका माहात्म्य मुझे विस्तार से बताइये ॥ ४-५ ॥ श्रीमहादेवजी बोले — वत्स ! सुनो, मैं तुम्हें पुण्यों में भी परम श्रेष्ठ पुण्यस्वरूपिणी कथा सुनाता हूँ, जिसे सुनकर पापी मनुष्य भी जन्म-मरण वाले इस संसार के बन्धन से मुक्त हो जाता है ॥ ६ ॥ प्राचीन काल में गङ्गा के विवाह-महोत्सव की बात सुनकर भगवान् विष्णु ने गङ्गासहित प्रसन्न हुए भगवान् शंकर को देखने की इच्छा से सत्कारपूर्वक उन्हें अपनी वैकुण्ठपुरी में बुलाया। महामुने! ब्रह्मादि देवगण भी परमेश्वर शिव तथा जगन्नाथ विष्णु के दर्शन की लालसा से वहाँ पहुँचे ॥ ७-८ ॥ यह बात सुनकर मरीचि आदि दूसरे महर्षिगण भी एक सुन्दर सभा का निर्माण करके वहाँ दिव्य आसनों पर विराजमान हो गये। एक सुन्दर रत्नसिंहासन पर महेश्वर शिव को बैठाकर प्रसन्नचित्त से भगवान् विष्णु ने निवेदन किया — महेश्वर ! कोई गीत सुनाइये ॥ ९-१० ॥ आप दीर्घकाल तक सती के वियोग से दुःखित और व्यग्रचित्त रहे हैं । उन सती ने अपने अंशावतार से आपको पुनः प्राप्त कर लिया है। देववन्दित! आपको गङ्गा के साथ प्रसन्नचित्त और प्रसन्नमुख देखकर हम सब भी बड़े प्रसन्न हैं। विश्वेश ! इसलिये अत्यन्त प्रीति उत्पन्न करने वाला आपके मुख से निकला हुआ गान हम सुनना चाहते हैं। महेश्वर ! आप कृपापूर्वक गायन करें ॥ ११–१३ ॥ अमिततेजस्वी भगवान् विष्णु के ऐसे वचन सुनकर भगवान् शंकर ने अत्यन्त अद्भुत, श्रेष्ठ और मनोहर गायन प्रस्तुत किया ॥ १४ ॥ श्रेष्ठ ! अत्यन्त मनोहारी पहले गीत को सुनकर सभी ब्रह्मादि श्रेष्ठ देवगण मुग्ध हो गये । नारदजी ! दूसरे गीत को सुनकर वैकुण्ठपति भगवान् विष्णु के शरीर में रोमाञ्च हो आया और वे संज्ञाशून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। मुनिश्रेष्ठ ! तीसरे गीत को सुनकर वे परमेश्वर भगवान् विष्णु क्षणभर में द्रवीभूत हो गये । मुनिश्रेष्ठ ! विष्णु द्रवीभूत होने से वैकुण्ठ में बाढ़ आ गयी और चारों ओर जल व्याप्त हो गया ॥ १५-१८ ॥ तब ब्रह्मादि श्रेष्ठ देवगणों ने सचेत होकर समस्त विष्णुधाम वैकुण्ठ को जल से व्याप्त देखा। उस लोक के अन्य सभी स्थानों को विष्णु की जलमयी मूर्ति से व्याप्त देख-देखकर वे अत्यन्त विस्मित हुए ॥ १९-२० ॥ तदनन्तर शिव के गायन से भगवान् विष्णु की द्रवरूपता को जानकर ब्रह्माजी ने उस जल को अपने कमण्डलु में रख लिया । गङ्गा की एक मूर्ति [ भगवान् शिव के साथ ] थी और उस कमण्डलु में प्राप्त जल से उनकी दूसरी द्रवमयी मूर्ति भी प्राप्त हो गयी ॥ २१-२२ ॥ मुने! गङ्गा की जलमयी मूर्ति को कमण्डलु में लेकर लक्ष्मी और सरस्वती को आश्वस्त करके ब्रह्माजी अपने धाम को चले गये ॥ २३ ॥ भगवान् शिव भी गङ्गा को साथ लेकर कैलास आ गये। नारदजी! सभी अन्य देवगण भी स्वर्ग को चले गये ॥ २४ ॥ मुनिश्रेष्ठ ! इस प्रकार द्रवमयी होकर त्रैलोक्यपावनी गङ्गा ब्रह्मा के कमण्डलु में स्थित हो गयीं ॥ २५ ॥ जिस प्रकार देवी गङ्गा विष्णुपद पहुँचीं और उन सुरेश्वरी ने ‘विष्णुपादोद्भवा’ नाम प्राप्त किया और लोकोद्धारहेतु प्रार्थना किये जाने पर उन्होंने जिस प्रकार पृथ्वी पर अवतार लिया तथा जैसे चतुर्मुखी होकर सबके कल्याण के लिये चारों दिशाओं में वे बह निकलीं, अब उस आख्यान को सुनो ॥ २६-२७ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीमहाभागवत महापुराण के अन्तर्गत शिव-नारद-संवाद में ‘गङ्गा का द्रवरूपवर्णन नामक चौंसठवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ६४ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe