June 17, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 107 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ एक सौ सातवाँ अध्याय भुवनकोष (पृथ्वी-द्वीप आदि) -का तथा स्वायम्भुव सर्ग का वर्णन स्वायम्भुवसर्गः अग्निदेव कहते हैं — वसिष्ठ ! अब मैं भुवनकोष तथा पृथ्वी एवं द्वीप आदि के लक्षणों का वर्णन करूँगा । आग्नीध्र, अग्निबाहु, वपुष्मान्, द्युतिमान्, मेधा, मेधातिथि, भव्य, सवन और क्षय — ये प्रियव्रत के पुत्र थे। उनका दसवाँ यथार्थनामा पुत्र ज्योतिष्मान् था। प्रियव्रत के ये पुत्र विश्व में विख्यात थे। पिता ने उनको सात द्वीप प्रदान किये। आग्नीध्र को जम्बूद्वीप एवं मेधातिथि को प्लक्षद्वीप दिया । वपुष्मान् को शाल्मलिद्वीप, ज्योतिष्मान् को कुशद्वीप, द्युतिमान् को क्रौञ्चद्वीप तथा भव्य को शाकद्वीप में अभिषिक्त किया। सवन को पुष्करद्वीप प्रदान किया। (शेष तीन को कोई स्वतन्त्र द्वीप नहीं मिला।) आग्नीध ने अपने पुत्रों में लाखों योजन विशाल जम्बूद्वीप को इस प्रकार विभाजित कर दिया। नाभि को हिमवर्ष (आधुनिक भारतवर्ष) प्रदान किया। किम्पुरुष को हेमकूटवर्ष, हरिवर्ष को नैषधवर्ष, इलावृत को मध्यभाग में मेरुपर्वत से युक्त इलावृतवर्ष, रम्यक को नीलाचल के आश्रित रम्यकवर्ष, हिरण्यवान् को श्वेतवर्ष एवं कुरु को उत्तरकुरुवर्ष दिया। उन्होंने भद्राश्व को भद्राश्ववर्ष तथा केतुमाल को मेरुपर्वत के पश्चिम में स्थित केतुमालवर्ष का शासन प्रदान किया। महाराज प्रियव्रत अपने पुत्रों को उपर्युक्त द्वीपों में अभिषिक्त करके वन में चले गये। वे नरेश शालग्रामक्षेत्र में तपस्या करके विष्णुलोक को प्राप्त हुए ॥ १-८ ॥ ‘ मुनिश्रेष्ठ! किम्पुरुषादि जो आठ वर्ष हैं, उनमें सुख की बहुलता है और बिना यत्न के स्वभाव से ही समस्त भोग-सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। उनमें जरा-मृत्यु आदि का कोई भय नहीं है और न धर्म-अधर्म अथवा उत्तम, मध्यम और अधम आदि का ही भेद है। वहाँ सब समान हैं। वहाँ कभी युग परिवर्तन भी नहीं होता। हिमवर्ष के शासक नाभि के मेरु देवी से ऋषभदेव पुत्ररूप में उत्पन्न हुए। ऋषभ के पुत्र भरत हुए। ऋषभदेव ने भरत पर राज्यलक्ष्मी का भार छोड़कर शालग्रामक्षेत्र में श्रीहरि की शरण ग्रहण की। भरत के नाम से ‘भारतवर्ष’ प्रसिद्ध है। भरत से सुमति हुए। भरत ने सुमति को राज्यलक्ष्मी देकर शालग्रामक्षेत्र में श्रीहरि की शरण ली। उन योगिराज ने योगाभ्यास में तत्पर होकर प्राणों का परित्याग किया। इनका वह चरित्र तुमसे मैं फिर कहूँगा ॥ ९–१२१/२ ॥ तदनन्तर सुमति के वीर्य से इन्द्रद्युम्न का जन्म हुआ। उससे परमेष्ठी और परमेष्ठी का पुत्र प्रतीहार हुआ। प्रतीहार के प्रतिहर्ता, प्रतिहतक भव भव के उद्गीथ, उद्गीथ के प्रस्तार तथा प्रस्तार के विभु नामक पुत्र हुआ। विभु का पृथु पृथु का नक्त एवं नक्त का पुत्र गय हुआ। गय के नर नामक पुत्र और नर के विराट् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। विराट् का पुत्र महावीर्य था। उससे धीमान् का जन्म हुआ तथा धीमान्का पुत्र महान्त और उसका पुत्र मनस्यु हुआ। मनस्यु का पुत्र त्वष्टा, त्वष्टा का विरज और विरज का पुत्र रज हुआ। मुने! रज के पुत्र शतजित्के सौ पुत्र उत्पन्न हुए, उनमें विश्वज्योति मुख्य था। उनसे भारतवर्ष की अभिवृद्धि हुई । कृत- त्रेतादि युगक्रम से यह स्वायम्भुव मनु का वंश माना गया है ॥ १३-१९ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘भुवनकोष तथा पृथ्वी एवं द्वीप आदि के लक्षण का वर्णन’ नामक एक सौ सातवां अध्याय पूरा हुआ ॥ १०७ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe