June 18, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 118 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ एक सौ अठारहवाँ अध्याय भारतवर्ष का वर्णन भारतवर्षं अग्निदेव कहते हैं — समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण जो वर्ष है, उसका नाम ‘भारत’ है। उसका विस्तार नौ हजार योजन है। स्वर्ग तथा अपवर्ग पाने की इच्छावाले पुरुषों के लिये यह कर्मभूमि है। महेन्द्र, मलय, सह्य शुक्तिमान्, हिमालय, विन्ध्य और पारियात्र — ये सात यहाँ के कुल पर्वत हैं। इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रवर्ण, गभस्तिमान्, नागद्वीप, सौम्य, गान्धर्व और वारुण — ये आठ द्वीप हैं। समुद्र से घिरा हुआ भारत नवाँ द्वीप है ॥ १-४ ॥’ भारतद्वीप उत्तर से दक्षिण की ओर हजारों योजन लंबा है। भारत के उपर्युक्त नौ भाग हैं । भारत की स्थिति मध्य में है। इसमें पूर्व की ओर किरात और (पश्चिम में) यवन रहते हैं। मध्यभाग में ब्राह्मण आदि वर्णों का निवास है। वेद स्मृति आदि नदियाँ पारियात्र पर्वत से निकली हैं। विन्ध्याचल से नर्मदा आदि प्रकट हुई हैं। सह्य पर्वत से तापी, पयोष्णी, गोदावरी, भीमरथी और कृष्णवेणा आदि नदियों का प्रादुर्भाव हुआ है ॥ ५-७ ॥ मलय से कृतमाला आदि और महेन्द्र पर्वत से त्रिसामा आदि नदियाँ निकली हैं। शुक्तिमान् से कुमारी आदि और हिमालय से चन्द्रभागा आदि का प्रादुर्भाव हुआ है। भारत के पश्चिमभाग में कुरु, पाञ्चाल और मध्यदेश आदि की स्थिति है ॥ ८ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘भारतवर्ष का वर्णन’ नामक एक सौ अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ११८ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe