दिशा, स्थान बाँधने का मन्त्र
मन्त्र :- “काला गुरू, धर धतूर तै । जान बास – बसेरु, अमली खेरु । वन देउता आकासे लाग, दशो दिशा दशो देउता । मोरे गुरू, तोर गुरू । मै जानो शपथ साँची । कहु राख धरू मार, बन्धान पर ओर – छोर । मोर देउता, गौरा पार्वती, महादेव की दोहाई । गुरू की शक्ति, मेरी भक्ति । फुरै मन्त्र, ईश्वरो बाँचा ।”

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विधि– शिव-मन्दिर में बैठकर नित्य उक्त मन्त्र की १ माला जप करें । ३० दिन में मन्त्न की पूर्ण सिद्धि होती है । किसी भी साधना के पूर्व मन्त्र को पढ़ते हुए पीली सरसों फेंककर दशों दिशाओं को बाँध देना चाहिए । इस प्रकार दिग्-बन्धन का यह सिद्ध शाबर- मन्त्र है ।

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