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पीताम्बरा अष्टक
ध्यावत धनेश-अमरेश हू रमेश नित्य,
पूजत प्रजेश पद-कञ्ज शम्भु-रानी के ।
गावत गजानन षडानन अनन्त वेद,
पावन दयाल मातु गुन वर-दानी के ।
पावत परम पुरषारथ प्रसाद जन,
लावत ललकि उर ध्यान दया-धानी के ।
भावत ‘सरोज’ बल-वैभव अपार,
अरि-नाशक समृद्ध सदा बगला भवानी के ।। १

सोहत सुधाब्धि-मध्य मणि-मय मण्डप मो,
कनक-सिंहासन पै बगला भवानी है ।
पीत-पट-माल-अंग-राग-रंग इन्दु भाल,
अरि-जीभ गदा-पाश-वज्र की दधानी है ।
कुण्डल-किरीट-हार ललित मुखाम्बुज की,
मोहक अनूप छवि सोहत अमानी है ।
सिद्ध-सुर-साधक-समूह की ‘सरोज’ सदा,
भुक्ति-मुक्ति-दायक सहायक शिवानी है ।। २
नाम लेत धावत न लावत विलम्ब अम्ब,
आवत नसावत दुरन्त दुख-दीनता ।
साजत सुजस सुख-सौरभ अपार अति,
देत रिद्धि-सिद्धि सदा राखत न छीनता ।
पौरुष परम पुरषारथ प्रदान करै,
जारै जन-मन की समूल हू मलीनता ।
पीत-पटवारी गदा-पाश-वज्र-धारी सदा,
सेवक ‘सरोज’ की सुधारत प्रवीनता ।। ३
ममता-मयी हौ-छमता की है न ओर-छोर,
चाहौ जौन बरजोर रचना रचाती हौ ।
सुर-नर असुर चराचर की चर्चा कौन,
चतुर चलावै जब ब्रह्म कौ नचाती हौ ।
पालन-सृजन-बिनसन बहु रुप-रंग,
कौतुक कलित कहूँ प्रलय मचाती हौ ।
शंकर भयंकर ‘सरोज’ जगदम्ब ! तुमहीं,
चण्ड ह्वै चबाती कहूँ दौरि कै बचाती हौ ।। ४
माँगौ कर जोरि गहि पद-कञ्ज मातु ! तोहि,
बगला भवानी वर-दानी ! यही वर दे ।
कुटिल-कुचाली-दुष्ट देश-द्रोहियों के दल,
सकल समेटि हठि चूर-चूर कर दे ।
भ्रष्टाचार-अनाचार-व्यभिचार का प्रसार,
है अपार ताहि करि करुणा कुचर दे ।
भूले भारतीय जनता के मञ्जु मानस में,
आतमीय भव्य भावना के भाव भर दे ।। ५
अस्त्र-शस्त्र अन्न-वस्त्र यन्त्र-तन्त्र पूत मन्त्र,
धातु उप-धातु के भँडार भूरि भर दे ।
औरन की आस-विसवास त्यागि अम्ब! आशु,
देश को पुरातन सिंहासन पै धर दे ।
जागै जन-जन में स्वदेश-अनुराग-जोति,
पूर्व-इतिहास का विकास मातु ! कर दे ।
हेकड़ हठीले गरबीले वैरि दल-बल,
हेरि-हेरि घेरि-घेरि दौरि-दौरि दर दे ।। ६
रघु-पति राम घनश्याम वीर यदु-पति,
द्विज-पति राम बलराम हू बनाय दे ।
हनुमत महा-वीर रण-धीर भीम बली,
वीर-व्रती महा-रथी पारथ जनाय दे ।
देश-धर्म-मानी अभिमानी परताप शिवा,
नानक गोविन्द गुण-गौरव गनाय दे ।
वल्लभ जवाहर सुभाष आदि वीरन के,
वीरता-वितान विश्व-नभ में तनाय दे ।।७
रामकृष्ण गोरख विवेकानन्द अरविन्द,
मोतीलाल स्वामी सिद्ध सुकुल हगाय दे ।
देश-हित साधना में शाक्त साधकों को अम्ब !
अविलम्ब अवलम्ब वनि कै लगाय दे ।
व्यापक परम ब्रह्म विश्व में विराजै एक,
साजै सुख-साज भैद-भावना भगाय दे ।
दुष्ट-दुराचारी दैत्य दानव-रुप मानवों को,
मानवीय प्रीति-रीति-रस में पगाय दे ।। ८
(प॰ काशीप्रसाद शुक्ल)

baglamukhi

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