February 2, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 29 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ उनतीसवाँ अध्याय नरक-कुण्डों और उनमें जाने वाले पापियों तथा पापों का वर्णन भगवान् नारायण कहते हैं — नारद! रविनन्दन धर्मराज ने सावित्री को विधिपूर्वक विष्णु का महामन्त्र देकर ‘अशुभकर्म का विपाक’ कहना आरम्भ किया। धर्मराज ने कहा- —पतिव्रते ! मानव शुभकर्म के विपाक से नरक में नहीं जा सकता। नरक में जाने में कारण है — अशुभकर्म का विपाक । अतएव अब मैं अशुभकर्म का विपाक बतलाता हूँ, सुनो। नाना प्रकार के स्वर्ग हैं। प्राणी अपने-अपने कर्मों के प्रभाव से उन स्वर्गों में जाते हैं। नरकों में जाना कोई मनुष्य नहीं चाहते, परंतु अशुभकर्म विपाक उन्हें नरक में जाने के लिये विवश कर देते हैं। नरकों के नाना प्रकार के कुण्ड हैं । विभिन्न पुराणों के भेद से इनके नामों के भी भेद हो गये हैं । ये सभी कुण्ड बड़े ही विस्तृत हैं । पापियों को दुःख का भोग कराना ही इन कुण्डों का प्रयोजन है । वत्से ! ये भयंकर कुण्ड अत्यन्त भयावह तथा कुत्सित हैं। इनमें छियासी कुण्ड तो प्रसिद्ध हैं, जो संयमनीपुरी में स्थित हैं । इनके अतिरिक्त कुछ अप्रसिद्ध भी हैं। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय साध्वि ! उन प्रसिद्ध कुण्डों के नाम बतलाता हूँ, सुनो। वह्निकुण्ड, तप्तकुण्ड, भयानक क्षारकुण्ड, विट्कुण्ड, मूत्रकुण्ड, दु:सह श्लेष्मकुण्ड, गरकुण्ड, दूषिकाकुण्ड, वसाकुण्ड, शुक्रकुण्ड, असृक्कुण्ड, कुत्सित अश्रुकुण्ड, गात्रमलकुण्ड, कर्णविट्कुण्ड, मज्जाकुण्ड, मांसकुण्ड, दुस्तर नखकुण्ड, लोमकुण्ड, केशकुण्ड, दुःखद अस्थिकुण्ड, ताम्रकुण्ड, महान् क्लेशदायक प्रतप्तलौहकुण्ड, तीक्ष्ण कण्टककुण्ड, विघ्नप्रद विषकुण्ड, घर्मकुण्ड, तप्तसुराकुण्ड, प्रतप्ततैलकुण्ड, दुर्वहदन्तकुण्ड, कृमिकुण्ड, पूयकुण्ड, दुरन्त सर्पकुण्ड, मशकुण्ड, दंशकुण्ड, भयंकर गरलकुण्ड, वज्रदंष्ट्रकुण्ड, वृश्चिककुण्ड, शरकुण्ड, शूलकुण्ड, भयंकर खड्गकुण्ड, गोलकुण्ड, नक्रकुण्ड, शोकास्पद काककुण्ड, सञ्चालकुण्ड, बाजकुण्ड, दुस्तर वन्धकुण्ड, तप्तपाषाणकुण्ड, तीक्ष्ण पाषाणकुण्ड, लालाकुण्ड, मसीकुण्ड, सुदारुण चूर्णकुण्ड, चक्रकुण्ड, वज्रकुण्ड, अत्यन्त दुःसह कूर्मकुण्ड, ज्वालाकुण्ड, भस्मकुण्ड, पूतिकुण्ड, तप्तसूर्मिकुण्ड, असिपत्रकुण्ड, क्षुरधारकुण्ड, सूचीमुखकुण्ड, गोधामुखकुण्ड, नक्रमुखकुण्ड, गजदंशकुण्ड, गोमुखकुण्ड तथा कुम्भीपाक, कालसूत्र, अवटोद, अरुन्तुद, पांशुभोज, पाशवेष्ट, शूलप्रोत, प्रकम्पन, उल्कामुख, अन्धकूप, वेधन, दण्डताडन, जालबन्ध, देहचूर्ण, दलन, शोषणकरं, सर्पमुख, ज्वालामुख, जिम्भ, धूमान्ध तथा नागवेष्टनकुण्ड हैं। सावित्री ! ये सभी कुण्ड पापियों को क्लेश देने के लिये निर्मित हैं। दस लाख किंकरगण सदा इनकी देख-रेख में नियुक्त रहते हैं । उन किंकरों के हाथों में दण्ड, शूल और पाश रहते हैं। वे भयंकर एवं मदाभिमानी किंकर हाथों में भयावह गदा और शक्ति लिये रहते हैं । उनमें दया का नाम तक नहीं रहता । उन्हें कोई किसी प्रकार भी रोक नहीं सकता। उन तेजस्वी एवं निर्भीक अनुचरों की ताँबे के सदृश रक्तवर्ण की आँखें कुछ-कुछ पीले रंगी हैं। योगसिद्धि से सम्पन्न होने के कारण वे नाना प्रकार रूप धारण कर लिया करते हैं। मृत्युकाल उपस्थित होने पर समस्त पापी जीवों को वे स्वयं दिखायी पड़ते हैं। शिव, देवी, सूर्य और गणपति के उपासक तथा अपने कर्मों में निरत रहने वाले सिद्ध एवं योगी पुरुषोंको अपने पुण्य-प्रभाव से उनके सम्मुख नहीं जाना पड़ता। जो अपने धर्म में सदा निरत रहते हैं, जिनका हृदय विशाल है तथा जो पूर्ण स्वतन्त्र हैं, जिन्हें स्वप्न में भी कहीं भी इष्टदेव का दर्शन प्राप्त हो सका है, ऐसे वैष्णव पुरुषों को वे बलवान् एवं निश्शङ्क यम-किंकर कभी दिखायी नहीं देते। साध्वि ! इन कुण्डों की संख्या का निरूपण तो कर चुका, अब किन पापियों को किन कुण्डों में जाना पड़ता है, उन्हें बताता हूँ, सुनो। (अध्याय २९) ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे नारदनारायणसंवादे द्वितीये प्रकृतिखण्डे सावित्र्युपाख्याने यमसावित्रीसंवादे नरककुण्डसंख्यानं नामैकोनत्रिंशऽध्यायः ॥ २९ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Related