भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २०
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(प्रतिसर्गपर्व — द्वितीय भाग)
अध्याय – २०
अनंगमञ्जरीकथा

सूत जी बोले — इतना सुनकर वैताल ने पुनः राजा से कथा कहना आरम्भ किया । उस रमणीक विशाल नामक नगर में विपुलेश नामक राजा राज्य करता था । उस नगर में अर्थदंत नामक एक व्यापार कुशल वैश्य रहता था। उसके अनंगमञ्जरी नामक एक परमसुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। उसके पिता ने सुवर्ण नामक वैश्य के साथ उसका पाणिग्रहण सुसम्पन्न करा दिया। om, ॐएक बार वह सुवर्ण नामक वैश्य ने कमल नगर से किसी द्वीप के लिए प्रस्थान किया। उस लोभी ने द्रव्य के लोभवश वहाँ चिरकाल तक निवास किया । दैव योगात् एक दिन अनंगमञ्जरी के यहाँ एक श्रेष्ठ ब्राह्मण जिसका नाम कमलाकर था, किसी अनुष्ठान के निमित्त आया। हवन करने के उपरांत मार्जनार्थ वह सुन्दरी वहाँ आई । काम की कली की भाँति उसे देखकर वह ब्राह्मण मोहित हो गया और उसने मुग्ध होकर अपनी मदभरी (नशीली) आँखों से ताकती हुई उससे मिलने के लिए समय प्रदान किया। इस अंधेरी रात में आधीरात के समय तुम मुझसे मिलकर अत्यन्त सुख का अनुभव करो’ इसे सुनकर वह व्राह्मण उसके ध्यान में निमग्न हो गया। काम की अग्नि द्वारा चिरकाल से संतप्त रहने के नाते वह परमोत्तम आसन पर निद्रा के अधीन हो गया।

आधीरात के समय वह सुन्दरी काम पीडित होने के नाते उस ब्राह्मण के आगमन की प्रतीक्षा में तत्पर होकर उस अपने प्रिय का मार्ग देखने लगी। दैव संयोगवश वह ब्राह्मण उस समय न आ सका, इससे उसने अपने प्राण का परित्याग कर लिया । पश्चात् कमलाकर भी वहाँ पहुँचकर उस सुन्दरी का निधन होना देखकर अपना प्राणान्त कर लिया। प्रातःकाल अर्थदत्त ने उस स्त्री का दाह संस्कार किया। सुवर्ण भी वहाँ आकर अपनी प्रेयसी के लिए रुदन करने लगा। किंतु वह चिता में भस्म होकर स्वर्गलोक पहुँच गई।

इतना कहकर वह वैताल राजा विक्रम से कहने लगा उनमें किसका स्नेह अधिक था और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति कैसे हुई ?

राजा ने कहा — उसके पति का स्नेह अधिक है और उस स्त्री तथा ब्राह्मण का स्नेह मध्यम कोटि का है। ब्राह्मण के स्नेह से उस स्त्री का निधन होने के नाते उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई क्योंकि वैश्यों को सदैव ब्रह्मपूर्ति ब्राह्मणों की पूजा करनी चाहिए, एवं वह ब्राह्मण भी उस स्त्री की प्राप्ति नहीं कर सका उसने स्वर्गाधिनायक विष्णु का ध्यान करते हुए अपना निधन किया था अतः उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई तथा सुवर्ण भी अपने हृदय में यही समझा कि मेरी प्रिया ब्राह्मण सेविका थी इसीलिए वह मेरा त्याग कर अग्नि दाह के प्रभाव से स्वर्ग चली गई ।

(अध्याय २०)

See Also :-

1.  भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६
2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१
3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१

4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २०
5. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय ७
6. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १
7. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २
8. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ३
9. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ४
10. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ५
11. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ६
12. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ७
13. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ८
14. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ९
15. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १०
16. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ११
17. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १२
18. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १३
19. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १४
20. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १५
21. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १६
22. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १७
23. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १८
24. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १९

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