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भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १५७ से १५९
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – १५७ से १५९
सौर-धर्म-निरूपण में सूर्यावतार का कथन

शतानीक ने पूछा — ब्रह्मन् ! जिन तेजस्वी भगवान् सूर्यनारायण ने ब्रह्माजी को वर प्रदान किया, देवताओं और पृथ्वी को उत्पन्न किया, जो ब्रह्मादि देवताओं को प्रकाशित करनेवाले तथा समस्त जगत् के पालक, महाभूतोंसहित चौदह लोकों के स्रष्टा, पुराणों में तेजरूप से स्थित एवं पुराणों की आत्मा हैं तथा अग्नि में स्वयं स्थित हैं, जिनके सहस्रों सिर, सहस्रों नेत्र तथा सहस्रों चरण हैं, जिनके मुख से लोकपितामह ब्रह्मा, वक्षःस्थल से भगवान् विष्णु और ललाट से साक्षात् भगवान् शिव उत्पन्न हुए हैं, जो विघ्नों के विनाशक एवं om, ॐअन्धकारनाशक, लोक की शान्ति के लिये जो अग्नि, वेदि, कुशा, स्रुवा, प्रोक्षणी, व्रत आदि को उत्पन्न कर इनके द्वारा हव्य-भाग ग्रहण करते हैं, जो युग के अनुरूप कर्मों के विभाजन तथा क्षण, काल, काष्ठ, मुहूर्त, तिथि, मास, पक्ष, संवत्सर, ऋतु, कालयोग, विविध प्रमाण और आयु के उत्पादक तथा विनाशक हैं एवं परमज्योति और परम तपस्वी हैं, जो अच्युत तथा परमात्मा के नाम से जाने जाते हैं, वे ही महर्षि कश्यप के यहाँ पुत्र के रूप में कैसे अवतरित हुए ?

ब्रह्मादि जिनकी उपासना करते हैं तथा वेद-वेत्ताओं में जो उत्तम और देवताओं में प्रभु विष्णु हैं, जो सौम्यों में सौम्य और अग्नि में तेजःस्वरूप हैं, मनुष्यों में मन-रूप से तथा तपस्वियों में तप-रूप से विद्यमान है, जो विग्रहों में विग्रह हैं, जो देवताओं और मनुष्यों सहित समस्त लोकों को उत्पन्न करनेवाले हैं, वे देवों के देव भगवान् सूर्य किसलिये अदिति के गर्भ से स्वयं उत्पन्न हुए । ब्रह्मन् ! इस विषय में मुझे महान् आश्चर्य हो रहा है, भगवान् सूर्य की उत्पत्ति से आश्चर्यचकित होकर ही मैंने आपसे उनके आख्यान को पूछा है । महामुने ! भगवान् सूर्य के बल-वीर्य, पराक्रम, यश और उज्ज्वलित तेज का आप वर्णन करें ।सुमन्तु मुनि बोले — राजन् ! आपने भगवान् भास्कर की उत्पत्ति के सम्बन्ध में बहुत ही जटिल प्रश्न पूछा है । मैं अपनी सामर्थ्य अनुसार कह रहा हूँ । आप उसे श्रद्धा-भक्ति-पूर्वक सुनें ।

जो भगवान् सूर्य सहस्रों नेत्रों वाले, सहस्रों किरणों से युक्त और सहस्रों सिर तथा सहस्रों हाथवाले हैं, सहस्रों मुकुटों से सुशोभित तथा सहस्रों भुजाओं से युक्त एवं अव्यय हैं, जो सभी लोकों के कल्याण एवं सभी लोकों को प्रकाशित करने के लिये अनेक रूपों में अवतरित होते हैं, वही भगवान् सूर्य कश्यप द्वारा अदिति के गर्भ से पुत्र-रूप में उत्पन्न हुए । महाराज ! कश्यप और अदिति से जो-जो पुत्र उत्पन्न होते थे, वे उसी क्षण मर जाते थे । इस पुत्र-विनाश को देखकर पुत्र-शोक से दुःखी माता अदिति व्याकुल हो अपने पति महर्षि कश्यप के पास गयी । अदिति ने देखा कि महर्षि कश्यप अग्नि के सम्मान तेजस्वी, दण्ड धारण किये कृष्ण मृगचर्म पर आसीन तथा वल्कल धारण किये हुए भगवान् भास्कर के सदृश देदीप्यमान हो रहे हैं । इस प्रकार से उन्हें स्थित देखकर अदिति ने प्रार्थना करते हुए कहा — ‘देव ! आप इस तरह निश्चित होकर क्यों बैठे हैं ? मेरे पुत्र उत्पन्न होते ही मृत्यु को प्राप्त होते जा रहे हैं ।’ अदिति के इस वचन को सुनकर ऋषियों में उत्तम कश्यपजी ब्रह्मलोक गये और उन्होंने अदिति की बाते ब्रह्माजी को बतलायीं ।ब्रह्माजी ने कहा — पुत्र ! हमें भगवान् भास्कर के परम दुर्लभ स्थान पर चलना चाहिये । यह कहकर ब्रह्मा कश्यप और अदिति के साथ विमान पर आरूढ़ होकर सूर्यदेव के भवन को गये । उस समय सूर्यलोक की सभा में कहीं वेद-ध्वनि हो रही थी, कहीं यज्ञ हो रहा था । ब्राह्मण वेद की शिक्षा दे रहे थे । अठारह पुराणों के ज्ञाता, विद्याविशारद, मीमांसक, नैयायिक, वेदान्तविद्, लोकायतिक आदि सभी सूर्य की उपासना में लगे हुए थे । विद्वान् ब्राह्मण जप, तप, हवन आदि में संलग्न थे । उस सभा में रश्मिमाली भगवान् दिवाकर को महर्षि कश्यप आदि ने देखा । देवताओं के गुरु बृहस्पति, असुरों के गुरु शुक्राचार्य आदि भी वहीं पर भगवान् सूर्य की उपासना कर रहे थे । दक्ष, प्रचेता, पुलह, मरीचि, भृगु, अत्रि, वसिष्ठ, गौतम, नारद, अन्तरिक्ष, तेज, पृथ्वी, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, प्रकृति, विकृति, अङ्ग उपाङ्ग सहित चारों वेद और लव, ऋतु, संकल्प, प्रणव आदि बहुत-से मूर्तिमान् होकर भगवान् भास्कर की स्तुति-उपासना कर रहे थे । अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष, द्वेष, हर्ष, मोह, मत्सर, मान, वैष्णव, माहेश्वर, सौर, मारुत, विश्वकर्मा तथा अश्विनीकुमार आदि सुन्दर-सुन्दर वचनों से भगवान् सूर्य का गुणगान कर रहे थे ।

ब्रह्माजी ने भगवान् भास्कर से निवेदन किया — भगवन् ! आप देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर लोक का कल्याण कीजिये । इस त्रैलोक्य को अपने तेज से प्रकाशित कीजिये । देवताओं को शरण दीजिये । असुरों का विनाश एवं अदितिपुत्रों की रक्षा कीजिये ।

भगवान् सूर्य ने कहा — आप जैसा कह रहे हैं, वैसा ही होगा । प्रसन्न होकर महर्षि कश्यप देवी अदिति के साथ अपने आश्रम में चले आये और ब्रह्माजी भी अपने लोक को चले गये ।

सुमन्तु मुनि बोले — महाराज़ ! कालान्तर में भगवान् सूर्य अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए, जिससे तीनों लोकों में सुख छा गया और दैत्यों का विनाश हो गया, देवताओं की वृद्धि हुई और उनके प्रभाव से सभी लोगों में परम आनन्द व्याप्त हो गया ।

इस प्रकार देवमाता अदिति के गर्भ से भगवान् सूर्य के जन्म ग्रहण करने पर आकाश में दुन्दुभियाँ बजने लगी, गन्धर्वगण गान करने लगे । द्वादशात्मा भगवान् सूर्य की सभी देवगण, ऋषि-महर्षि तथा दक्ष प्रजापति आदि स्तुति करने लगे । उस समय एकादश रुद्र, अश्विनीकुमार, आठों वसु, महाबली गरुड़, विश्वेदेव, साध्य, नागराज वासुकि तथा अन्य बहुत से नाग और राक्षस भी हाथ जोड़े खड़े थे । पितामह ब्रह्मा भी स्वयं पृथ्वी पर आये और सभी देवता एवं ऋषि-महर्षियों से बोले— देवर्षिगण ! जिस प्रकार बालक-रूप में उत्पन्न होकर ये सभी को देख रहे हैं, उसी प्रकार ये लोकेश्वर श्रीमान् और विवस्वान्-रूप में विख्यात होंगे । देव, दानव, यक्ष, गन्धर्व आदिके जो कारण हैं ये ही आदिदेव भगवान् आदित्य हैं । इस प्रकार कहकर पितामह ब्रह्मा ने देवताओं और ऋषियों सहित उन्हें नमस्कार कर विधिपूर्वक उनकी अर्चना की तत्पश्चात् वे अपने-अपने लोकों को चले गये।

वेदों द्वारा गेय तथा इन्द्रादि बारह नामों से युक्त भगवान् सूर्य को पुत्र-रूप में प्राप्तकर महर्षि कश्यप अदिति के साथ परम संतुष्ट हो गये एवं सारा विश्व हर्ष से व्याप्त हो गया तथा सभी राक्षस भयभीत हो गये ।

भगवान् सूर्य बोले — महर्षे ! आपके पुत्र नष्ट हो जाते थे, इसलिये गर्भ की सिद्धि के लिये मैं आपके यहाँ पुत्र-रूप में उत्पन्न हुआ हूँ ।

सुमनु मुनि बोले — राजन् ! इस प्रकार भगवान् भास्कर की आराधना करके ब्रह्माजी ने सृष्टि करने का वर प्राप्त किया और कश्यपमुनि ने भी भगवान् भास्कर को प्रसन्न कर उन्हें पुत्ररूप में प्राप्त कर लिया ।
(अध्याय १५७-१५९)

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