October 7, 2024 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण — कैलाससंहिता — अध्याय 02 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण कैलाससंहिता दूसरा अध्याय भगवान् शिवसे पार्वतीजीकी प्रणवविषयक जिज्ञासा व्यासजी बोले- हे ब्राह्मणो ! परम सौभाग्यशाली आपलोगोंने यह बहुत अच्छी बात पूछी है; क्योंकि प्रणवार्थको प्रकाशित करनेवाला शिवज्ञान [सर्वथा ] दुर्लभ है ॥ १ ॥ त्रिशूल नामक उत्तम आयुध धारण करनेवाले साक्षात् भगवान् शिव जिनपर प्रसन्न होते हैं, उन्हींको प्रणवार्थको प्रकाशित करनेवाला शिवज्ञान प्राप्त होता है, इसमें संशय नहीं है; यह शिवभक्तिसे रहित अन्य लोगोंको नहीं प्राप्त होता है- यह वेदवचन है तथा यथार्थ तत्त्वका निश्चय है ॥ २-३ ॥ आपलोगोंने इस दीर्घ सत्रके माध्यम से अम्बिकापति भगवान् सदाशिवकी उपासना की है, इसे मैंने आज निश्चित रूपसे देख लिया । अतः हे आस्तिको ! मैं आपलोगोंसे उमा-महेश्वरका संवादरूप प्राचीन तथा अद्भुत इतिहास कह रहा हूँ ॥ ४-५ ॥ महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥ पूर्व समयमें दक्षपुत्री जगन्माता सतीने पिताके यज्ञमें शिवजीकी निन्दाके कारण अपना शरीरत्याग कर दिया । इसके बाद वे देवी उस शिवनिष्ठाके प्रभावसे [दूसरे जन्ममें] हिमालयकी पुत्री हुईं। वे नारदजीके उपदेशसे शिवके निमित्त तप करने लगीं ॥ ६-७ ॥ उसके अनन्तर हिमालयने स्वयंवरविधिसे शिवजीके साथ उनका विवाह कर दिया, इससे वे पार्वती आनन्दित हुईं। इसके बाद किसी समय हिमालयपर्वतपर पतिके साथ सुखपूर्वक बैठी हुई महादेवी गौरी शिवजीसे कहने लगीं — ॥ ८-९ ॥ महादेवी बोलीं- हे भगवन्! हे परमेश्वर ! हे पंचकृत्यविधायक! हे सर्वज्ञ ! हे भक्तिसुलभ ! हे परम अमृतस्वरूप! मैंने तुम्हारी निन्दा होनेके कारण पूर्वजन्ममें दक्षपुत्रीका शरीर त्यागकर इस समय हिमालयकी पुत्रीके रूपमें जन्म लिया है । हे परमेशान ! हे महेश्वर ! अब कृपापूर्वक मुझे मन्त्रदीक्षाविधिसे विशुद्ध आत्मतत्त्वमें सदाके लिये स्थित कीजिये ॥ १०-१२ ॥ इस प्रकार जब देवीने चन्दभषण सदाशिवसे पार्थना की, तब वे प्रसन्नमनसे देवीसे कहने लगे- ॥ १३ ॥ महादेव बोले- हे देवि ! आप धन्य हैं, जो आपकी ऐसी बुद्धि हुई है, मैं कैलास – शिखरपर जाकर आपको विशुद्ध तत्त्वमें स्थित करूँगा ॥ १४ ॥ इसके बाद हिमालयसे पर्वत श्रेष्ठ कैलासके शिखरपर जाकर शिवजीने दीक्षाविधिसे उन्हें प्रणवादि मन्त्रोंका उपदेश दिया। इस प्रकार उन मन्त्रोंका उपदेश करके देवीको विशुद्ध आत्मतत्त्वमें स्थितकर महादेवजी देवीके साथ देवोद्यानमें चले गये ॥ १५-१६ ॥ इसके बाद देवीकी सुमालिनी आदि प्रिय सखियोंके द्वारा लाये गये कल्पवृक्षके खिले हुए पुष्पोंसे महादेवीको अलंकृत करके उन्हें अपनी गोदमें बैठाकर उनका मुख देखकर प्रसन्नमुख शिवजी वहाँ बैठ गये ॥ १७-१८ ॥ तत्पश्चात् सभी लोकोंके कल्याणके लिये पार्वती एवं परमेश्वरके बीच वेदार्थसम्मत प्रिय कथाएँ होने लगीं। हे तपोधनो ! उसी समय अपने पतिकी गोद में विराजमान सम्पूर्ण जगत् की माताने अपने पतिके मुखको देखकर यह कहा— ॥ १९-२० ॥ श्रीदेवी बोलीं- हे देव ! आपके द्वारा उपदिष्ट मन्त्र प्रणवयुक्त कहे गये हैं, अत: सबसे पहले मैं प्रणवके निश्चित अर्थको सुनना चाहती हूँ ॥ २१ ॥ प्रणव किस प्रकार उत्पन्न हुआ, इसे प्रणव क्यों कहा जाता है, इसमें कितनी मात्राएँ कही गयी हैं और यह वेदोंका आदि क्यों कहा जाता है ? इसके कितने देवता कहे गये हैं, इसमें किस प्रकार देवादिकी भावना की जाती है, इसमें कितने प्रकारकी क्रियाएँ बतायी गयी हैं और इसकी व्याप्य व्यापकता कैसी है ? क्रमश: सद्योजातादि पंचब्रह्म इस मन्त्रमें किस प्रकार निवास करते हैं, कितनी कलाएँ कही गयी हैं ? और प्रपंचात्मकता क्या है ? इसका वाच्य – वाचकसम्बन्ध और स्थान किस प्रकारका है, इसका अधिकारी किसे जानना चाहिये और इसका विषय किसे कहा गया है ? इसमें सम्बन्ध किसे जानना चाहिये, इसका कौन-सा प्रयोजन कहा जाता है, इसकी उपासना करनेवाला किस रूपका होता है और उपासनाके योग्य स्थान कैसा होता है ? हे प्रभो ! इसकी उपास्य वस्तु किस प्रकारकी है, इसकी उपासना करनेवालोंका फल क्या होता है, इसकी अनुष्ठानविधि क्या है तथा पूजनका स्थान क्या है ? हे हर ! पूजामें मण्डल कैसा हो, इसके ऋषि आदि कौन हैं, इसमें न्यास तथा जपकी विधि क्या है और पूजाविधिका क्रम क्या है ? हे महेशान! यदि आपकी मुझपर कृपा है, तो यह सब मुझे विशेषरूपसे बताइये, मैं इसे यथार्थरूपसे सुनना चाहती हूँ ॥ २२–२९ ॥ देवीके द्वारा इस प्रकार पूछे जानेपर भगवान् चन्द्रभूषण [उन] महेश्वरीकी प्रशंसा करके कहने लगे—॥ ३० ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत छठी कैलाससंहितामें देवीदेवसंवादमें देवीकृत प्रश्नवर्णन नामक दूसरा अध्याय पूर्ण हुआ ॥ २ ॥ Please follow and like us: Related