December 20, 2018 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९० से १९२ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व) अध्याय – १९० से १९२ पातक, उपपातक, यममार्ग एवं यमयातना का वर्णन सप्ताश्चतिलक भगवान् सूर्य ने कहा — खगश्रेष्ठ ! मानसिक, याचिक तथा कायिक— भेद से पाप अनेक प्रकार के होते हैं, जो नरक-प्राप्ति के कारण हैं, उन्हें में संक्षेप में बतला रहा हूँ । गौओं के मार्ग में, वन में, नगर में और ग्राम में आग लगाना आदि सुरापान के समान महापातक माने गये हैं । पुरुष, स्त्री, हाथी एवं घोड़ों का हरण करना तथा गोचरभूमि में उत्पन्न फसलों को नष्ट करना, चन्दन, अगरु, कपूर, कस्तूरी, रेशमी वस्त्र आदि की चोरी करना और धरोहर (थाती) वस्तु का अपहरण करना — ये सभी सुवर्णस्तेय के समान महापातक माने गये हैं । कन्या का अपहरण, पुत्र एवं मित्र की स्त्री तथा भगिनी के प्रति दुराचरण, कुमारी कन्या और अन्त्यज की स्त्री के साथ सहवास, सवर्णा के साथ गमन — ये सभी गुरु शय्या पर शयन ( गुरुपत्नी-गमन ) के समान महापातक माने गये हैं ।ब्राह्मण को अर्थ देने का वचन देकर नहीं देनेवाले, सदाचारिणी पत्नी का परित्याग करनेवाले, साधु, बन्धु एवं तपस्वियों का त्याग करनेवाले, गौ, भूमि, सुवर्ण को प्रयत्नपूर्वक चुरानेवाले, भगवद्भक्तों को उत्पीडित करनेवाले, धन, धान्य, कूप तथा पशु आदि की चोरी करनेवाले तथा अपूज्यों की पूजा करनेवाले — ये सभी उपपातकी हैं । नारियों की रक्षा न करना, ऋषियों को दान न देना, देवता, अग्नि, साधु, साध्वी, गौ तथा ब्राह्मण की निन्दा करना पितर एवं देवताओं का उच्छेद, अपने कर्तव्य-कर्म का परित्याग, दुःशीलता, नास्तिकता, पशु के साथ कदाचार, रजःस्वला से दुराचार, अप्रिय बोलना, फूट डालना आदि उपपातक कहे गये हैं । जो गौ, ब्राह्मण, सस्य-सम्पदा, तपस्वी और साधुओं के दूषक हैं, वे नरकगामी हैं । परिश्रम से तपस्या करनेवाले का छिद्रान्वेषण करनेवाला, पर्वत, गोशाला, अग्नि, जल, वृक्षों की छाया, उद्यान तथा देवायतन में मल-मूत्र का परित्याग करनेवाला, काम, क्रोध तथा मद से आविष्ट पराये दोषों के अन्वेषण में तत्पर, पाखण्डियों का अनुगामी मार्ग रोकनेवाला, दूसरे की सीमा का अपहरण करनेवाला, नीच कर्म करनेवाला, भृत्यों के प्रति अतिशय निर्दयी, पशुओं का दमन करनेवाला, दूसरों की गुप्त बातों को कान लगाकर सुननेवाला, गौ को मारने अथवा उसे बार-बार त्रास देनेवाला, दुर्बल की सहायता न करनेवाला, अतिशय भार से प्राणी को कष्ट देनेवाला और असमर्थ पशु को जोतनेवाला — ये सभी पातकी कहे गये हैं तथा नरकगामी होते हैं । जो परोक्ष में किसी प्रकार भी सरसों बराबर किसी का धन चुराता है, वह निश्चित ही नरक में जाता है । ऐसे पापियों को मृत्यु के उपरान्त यमलोक मे यातना-शरीर की प्राप्ति होती है । यम को आज्ञा से यमदूत उसे यमलोक में ले जाते हैं और वहाँ उसे बहुत दुःख देते हैं । अधर्म करनेवाले प्राणियों के शास्ता धर्मराज कहे गये हैं । इस लोक में जो पर-स्त्रीगामी हैं, चोरी करते हैं, किसके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार करते हैं तो इस लोक का राजा उन्हें दण्ड देता हैं । परंतु छिपकर पाप करनेवालों को धर्मराज दण्ड देते हैं । अतः किये गये पापों का प्रायश्चित करना चाहिये । अनेक प्रकार के शास्त्र-कथित प्रायश्चित्तों के द्वारा पातक नष्ट हो जाते हैं । शरीर से, मन से और वाणी से किये गये पाप बिना भोगे अन्य किसी प्रकार से कोटि कल्पों में भी नष्ट नहीं होते । जो व्यक्ति स्वयं अच्छा कर्म करता है, कराता है या उसका अनुमोदन करता है, वह उत्तम सुख प्राप्त करता है । सप्ताश्वतिलक भगवान् सूर्य ने पुनः कहा — हे खगश्रेष्ठ ! पाप करनेवालों को अपने पाप के निमित्त घोर संत्रास भोगना पड़ता है । गर्भस्थ, जायमान, बालक, तरुण, मध्यम, वृद्ध, स्त्री, पुरुष, नपुंसक सभी शरीर-धारियों को यमलोक में अपने किये गये शुभ और अशुभ फलों को भोगना पड़ता है । वहाँ सत्यवादी चित्रगुप्त आदि धर्मराज को जो भी शुभ और अशुभ कर्म बतलाते हैं, उन कर्मों का फल उस प्राणी को अवश्य ही भोगना पड़ता है । जो सौम्य-हृदय, दया-समन्वित एवं शुभकर्म करनेवाले हैं, वे सौम्य पथ से और जो मनुष्य क्रूर कर्म करनेवाले एवं पापाचरण में संलग्न हैं, वे घोर दक्षिण-मार्ग से कष्ट सहन करते हुए यमपुर में जाते हैं । वैवस्वतपुरी छियासी हजार अस्सी योजन में हैं । शुभ कर्म करनेवाले व्यक्तियों को यह धर्मपुरी समीप ही प्रतीत होती हैं और रौद्रमार्ग से जानेवाले पापियों को अतिशय दूर । यमपुरी का मार्ग अत्यन्त भयंकर हैं, कहीं काँटे बिछे हैं और कहीं बालू-ही-बालू है, कहीं तलवार की धार के समान हैं, कहीं नुकीले पर्वत हैं, कहीं असह्य कड़ी धूप है, कहीं खाइयाँ और कहीं लोहे की कीले हैं । कहीं वृक्षों तथा पर्वतों से गिराया जाता हुआ वह पापी व्यक्ति प्रेतों से युक्त मार्ग में दुःखित हो यात्रा करता है । कहीं ऊबड़खाबड़, कहीं कँकरीले और कहीं तप्त बालुकामय मार्गों से चलना पड़ता है । कहीं अन्धकाराच्छन्न भयंकर कष्टमय मार्ग से बिना किसी आश्रय के जाना पड़ता है । कहीं सींग से परिव्याप्त मार्गसे, कहीं दावाग्नि से परिपूर्ण मार्ग से, कहीं तप्त पर्वत से, कहीं हिमाच्छादित मार्ग से और कहीं अग्निमय मार्ग से गुजरना पड़ता है । उस मार्ग में कहीं सिंह, कहीं व्याघ्र, कहीं काटनेवाले भयंकर कीड़े, कहीं भयंकर जोंक, कहीं अजगर, कहीं भयंकर मक्षिकाएँ, कहीं विष वमन करनेवाले सर्प, कहीं विशाल बलोन्मत्त प्रमादी गजसमूह, कहीं भयंकर बिच्छू, कहीं बड़े-बड़े शृंगों वाले महिष, रौद्र डाकिनियाँ, कराल राक्षस तथा महान् भयंकर व्याधियाँ उसे पीड़ित करती हैं, उन्हें भोगता हुआ पापी व्यक्ति यममार्ग में जाता है । उस पर कभी पाषाण की वृष्टि होती है, कभी बिजली गिरती हैं तथा कभी वायु के झंझावातों में वह उलझाया जाता है और कहीं अंगारों की वृष्टि होती है । ऐसे भयंकर मार्ग से पापाचरण करनेवाले भूख-प्यास से व्याकुल मूढ पापी को यमदूत यमलोक की ओर ले जाते हैं ।अतः पाप छोड़कर पुण्य-कर्म का आचरण करना चाहिये । पुण्य से देवत्व प्राप्त होता है और पाप से नरक की प्राप्ति होती है । जो थोड़े समय के लिये भी मन से भगवान् सूर्य की पूजा करता है, वह कभी भी यमपुरी नहीं जाता । जो इस पृथिवी पर सभी प्रकार से भगवान् भास्कर की पूजा करते हैं, वे पाप से वैसे ही लिप्त नहीं होते, जैसे कमल-पत्र जल से लिप्त नहीं होता । इसलिये सभी प्रकार से भुवन-भास्कर की भक्तिपूर्वक आराधना करनी चाहिये । (अध्याय १९०-१९२) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२ 2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3 3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४ 4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५ 5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६ 6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७ 7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९ 8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५ 9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६ 10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७ 11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८ 12. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९ 13. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २० 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