December 14, 2018 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ९७ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व) अध्याय – ९७ जयन्ती-सप्तमी का विधान और फल ब्रह्माजी बोले — त्रिलोचन ! माघ मासके शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि जयन्ती-सप्तमी कही जाती है, यह पुण्यदायिनी, पापविनाशिनी तथा कल्याणकारिणी है । इस तिथिपर जिस विधिसे उपासना करनी चाहिये, उसे आप सुनें । पण्डितोंने इस व्रतमें चार पारणाओंका उल्लेख किया है । पञ्चमी तिथिमें एकभुक्त, षष्ठीमें नक्तव्रत और सप्तमीमें उपवास करके अष्टमीमें पारणा करनी चाहिये । माघ, फाल्गुन तथा चैत्र मास में जब जयन्ती-सप्तमीका व्रत किया जाय तब भगवान् सूर्यको बकुलके सुन्दर पुष्प चढ़ाने चाहिये तथा कुंकुमका विलेपन करना चाहिये, मोदकोंका नैवेद्य और घृतका धूप देना चाहिये । पञ्चगव्य-प्राशन करके पवित्रीकरण करना चाहिये । ब्राह्मणको मोदक यथाशक्ति खिलाना चाहिये तथा शालि नामक चावलका भात भी देना चाहिये । इस प्रकार जो मनुष्य लोकपूज्य भगवान् भास्करकी फूजा करता है, वह इस व्रतकी सभी पारणाओं में अश्वमेध एवं राजसूय-यज्ञ का फल प्राप्त करता है । द्वितीय पारणा में सूर्यभगवान् की पूजा करके राजसूययज्ञ का फल प्राप्त होता है । वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ मासमें सूर्यदेवकी पूजा करनेके लिये शतदल कमल तथा श्वेत चन्दन और गुग्गुलके धूपका विधान कहा गया है । इसमें गुड़ के बने हुए अपूप का नैवेद्य अर्पित करना चाहिये और गोमयका प्राशन करना चाहिये । ब्राह्मणोंको गुड़से बने हुए अपूपोंका भोजन कराना अच्छा माना गया है । यह पारणा पापनाशिका है । तृतीय पारणाकी विधि इस प्रकार है — श्रावण, भाद्रपद और आश्विन मासमें रक्त चन्दन, मालतीके पुष्प और विजय नामक धूपका पूजन में प्रयोग करना चाहिये। घृतमें बनाये गये अपूपोंका नैवेद्य निवेदित करना चाहिये । ब्राह्मणों को भोजन भी उसी घृतके अपूपोंसे करानेका विधान है । शरीरको परम पवित्र करनेवाले कुशोदकका पान करना चाहिये । यह तृतीय पारण पापोंका नाश करनेवाली कही गयी है । अब चौथी पारणा बता रहा हूँ. इसे सुनें—कार्तिक, मार्गशीर्ष तथा पौष मासमें सूर्यपूजन की पारणा करनेसे अनन्त पुण्यफल प्राप्त होते हैं । इस पारणा में कनेर केलाल पुष्प, रक्तचन्दन देने चाहिये। अमृत नामक धूप अगरुं चन्दनं मुस्तं सिह्लकं त्र्यूषणं तथा । समभागैस्तु कर्तव्यमिदं चामृतमुच्यते ॥(ब्राह्मपर्व ९७ । १९) अगरु, चन्दन, मोथा, सिह्लक (एक गन्ध-द्रव्य) और त्रिकटु (सोंठ, पीपर, मिर्च) को समभाग लेकर जो धूप बनाया जाता है, उसे ‘अमृत-धूप कहते हैं ।, पायसका श्रेष्ठ नैवेद्य निवेदित करना चाहिये । श्वेत गाय के मठ्ठे का प्राशन करनेका विधान है । चारों पारणाओंमें क्रमशः ‘चित्रभानुः प्रीयताम्’, ‘भानुः प्रीयताम्’, ‘आदित्यः प्रीयताम्’ तथा ‘भास्करः प्रीयताम्’ —ऐसा उच्चारण करना चाहिये। इस विधिसे जो मनुष्य विभावसु भगवान् सूर्यनारायणकी पूजा करता है, वह परम पदको प्राप्त होता है । इस प्रकार सप्तमी-व्रत करने पर व्रतकर्ताको सभी अभीष्ट कामनाओंकी प्राप्ति हो जाती है । पुत्रार्थी पुत्र तथा धनार्थी धन प्राप्त करता है और रोगी मनुष्य रोगोंसे मुक्त हो जाता है तथा अन्तमें वह नितान्त कल्याण प्राप्त करता है। इस प्रकार जो मनुष्य इस सप्तमी-व्रत का आचरण करता है, यह सर्वत्र विजयी होता है तथा सभी पापोंसे मुक्त होकर वह विशुद्धात्मा सूर्यलोकको प्राप्त करता हैं । (अध्याय ९७) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२ 2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3 3. 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