भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ४०
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय ४०
मन्दारषष्ठी-व्रत मत्स्यपुराण के अध्याय ७९ में मन्दारसप्तमी नाम से इसी व्रत का वर्णन हुआ है।

भगवान् श्रीकृष्ण बोले — राजन् ! अब मैं सभी पापों को दूर करनेवाले तथा समस्त कामना को पूर्ण करनेवाले मन्दार-षष्ठी नामक व्रत का विधान बतलाता हूँ । व्रती माघ मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को स्वल्प भोजन कर नियमपूर्वक रहे और षष्ठी को उपवास करे । ब्राह्मणों का पूजन करे तथा मन्दार का पुष्प भक्षण कर रात्रि में शयन करे ।om, ॐ षष्ठी को प्रातः उठकर स्नानादि करे तथा ताम्रपत्र में काले तिलों से एक अष्टदल कमल बनाये । उस पर हाथ में कमल लिये भगवान् सूर्य की सुवर्ण की प्रतिमा स्थापित करे । आठ सोने के अर्कपुष्पों से तथा गन्धादि उपचारों से अष्टदल-कमल के दलों में पूर्वादि क्रम से भगवान् सूर्य के नाम-मन्त्र द्वारा इस प्रकार पूजा करे — ‘ॐ भास्कराय नमः’ से पूर्व दिशामें, ‘ॐ सूर्याय नमः’ से अग्निकोणमें, ‘ॐ अर्काय नमः’ से दक्षिणमें, ‘ॐ अर्यमणे नमः’ से नैर्ऋत्यमें, ‘ॐ वसुधात्रे नमः’ से पश्चिममें, ‘ॐ चण्डभानवे नम:’ से वायव्यमें,‘ॐ पूष्णे नम:’ से उत्तरमें, “ॐ आनन्दाय नमः’ से ईशानकोणमें तथा उस कमलकी मध्यवर्ती कर्णिकामें ‘ॐ सर्वात्मने पुरुषाय नमः’ यह कहकर शुक्ल वस्त्र, नैवेद्य तथा माल्य एवं फलादि सभी उपचारों से भगवान् सूर्य का पूजन करे । सप्तमी को पूर्वाभिमुख मौन होकर तेल तथा लवण भक्षण करे । इस प्रकार प्रत्येक मास की शुक्ल-षष्ठी को व्रतकर सप्तमी को पारण करे । वर्ष के अन्त में वही मूर्ति कलश के ऊपर स्थापित कर यथाशक्ति वस्त्र, गौ, सुवर्ण आदि ब्राह्मण को प्रदान करे और दान करते समय यह मन्त्र पढ़े —

“नमो मन्दारनाथाय मन्दरभवनाय च ।
त्वं च वै तारयस्वास्मानस्मात् संसारकर्दमात् ॥”
(उत्तरपर्य ४० । ११)

‘हे मन्दारभवन, मन्दारनाथ भगवान् सूर्य ! आप हमलोगों का इस संसाररूपी पङ्क से उद्धार कर दें, आपको नमस्कार हैं ।’

इस विधि से जो मन्दार-षष्ठी का व्रत करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर एक कल्पतक सुखपूर्वक स्वर्ग में निवास करता है और जो इस विधान को पढ़ता है अथवा सुनता हैं, वह भी सभी पापों से मुक्त हो जाता है ।
(अध्याय ४०)

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