॥ शमी पूजन प्रयोगः ॥ राजा सजधज कर शमी पूजन हेतु नगर के बाहर जब कुछ तारे उदय हों उस समय के विजय नाम योग में प्रस्थान करे । शमीवृक्ष के पास भूमि शुद्धकर श्वेत वस्त्र पर चावलों से अष्टदल बनाकर उस पर कुंभ स्थापित करे । संकल्प करे- अद्येत्यांदि यात्रायां विजय सिद्धयर्थं गणेशमातृका वास्तु… Read More


॥ नवदुर्गा प्रार्थना व ध्यान ॥ वंदे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् । वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥ १ ॥ दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू । देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥ २ ॥… Read More


॥ श्रीराम कृत कात्यायनी स्तुति ॥ ॥ श्रीराम उवाच ॥ नमस्ते त्रिजगद्वन्द्ये संग्रामे जयदायिनि । प्रसीद विजयं देहि कात्यायनि नमोऽस्तु ते ॥ १ ॥ सर्वशक्तिमये दुष्टरिपुनिग्रहकारिणि । दुष्टजृम्भिणि संग्रामे जयं देहि नमोऽस्तु ते ॥ २ ॥ त्वमेका परमा शक्तिः सर्वभूतेष्ववस्थिता । दुष्टं संहर संग्रामे जयं देहि नमोऽस्तु ते ॥ ३ ॥… Read More


॥ पाण्डवाः कृत कात्यायनी स्तुति ॥ ॥ पाण्डवा ऊचुः ॥ कात्यायनि त्रिदशवन्दितपादपो, विश्वोद्भवस्थितिलयैकनिदानरूपे । देवि प्रचण्डदलिनि त्रिपुरारिपनि, दुर्गे प्रसीद जगतां परमार्तिहन्त्रि ॥ त्वं दुष्टदैत्यविनिपातकरी सदैव, दुष्टप्रमोहनकरी किल दुःखहन्त्री । त्वां यो भजेदिह जगन्मयि तं कदापि, नो बाधते भवसु दुःखमचिन्त्यरूपे ॥… Read More


॥ अथ शैलपुत्री सहस्रनाम ॥ इसे पुराणों में काली सहस्रनाम अथवा ललिता सहस्रनाम भी कहा गया है । भगवान शंकर ने जब कामदेव को भस्म कर दिया तो पार्वतीजी ने कहा कि मुझे पत्नि रूप में प्राप्त करने के लिये ही आपने तपस्या की थी फिर कामदेव को आपने क्यों भस्म कर दिया । शिवजी… Read More


॥ हिमालयराज कृत शैलपुत्री स्तुति ॥ ॥ हिमालय उवाच ॥ मातस्त्वं कृपयागृहे मम सुता जातासि नित्यापि यद्भाग्यं मे बहुजन्मजन्मजनितं मन्ये महत्पुण्यदम् । दृष्टं रूपमिदं परात्परतरां मूर्तिं भवान्या अपि माहेशी प्रति दर्शयाशु कृपया विश्वेशि तुभ्यं नमः ॥ १ ॥… Read More


॥ दुर्गम संकटनाशन स्तोत्र ॥ ॥ श्रीकृष्ण उवाच ॥ त्वमेव सर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी । त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका ॥ कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम् । परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी ॥ तेजःस्वरूपा परमा भक्तानुग्रहविग्रहा । सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा ॥… Read More


॥ ब्रह्माण्डविजय दुर्गा कवचम् ॥ ॥ नारायण उवाच ॥ श्रृणु नारद वक्ष्यामि दुर्गायाः कवचं शुभम् । श्रीकृष्णेनैव यद्‍दत्तं गोलोके ब्रह्मणे पुरा ॥ ब्रह्मा त्रिपुरसंग्रामे शंकराय ददौ पुरा । जघान त्रिपुरं रुद्रो यद् धृत्वा भक्तिपूर्वकम् ॥ हरो ददौ गौतमाय पद्माक्षाय च गौतमः । यतो बभूव पद्माक्षः सप्तद्वीपेश्वरो जयी ॥ यद् धृत्वा पठनाद् ब्रह्मा ज्ञानवान् शक्तिमान् भुवि… Read More