॥ कालिकोपनिषत् ॥ ॐ अथैनं ब्रह्मरन्ध्र ब्रह्मरूपिणीमाप्नोति । सुभगां त्रिगुणितां मुक्तासुभगां कामरेफेन्दिरासमस्तरूपिणीमेतानि त्रिगुणितानि तदतु कूर्चबीजं व्योमषष्ठस्वरां बिन्दुमेलनरूपां तद्द्वयं मायाद्वयं दक्षिणे कालिके चेत्यभिमुखगतां तदनु बीजसप्तकमुच्चार्य बृहद्भानुजायामुच्चरेत् । स तु शिवमयो भवेत् । सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् । गतिस्तस्यास्तीति । नान्यस्य गतिरस्तीति । स तु वागीश्वरः । स तु नारीश्वरः । स तु देवेश्वरः । स तु सर्वेश्वरः ।… Read More


॥ गुह्यकाल्युपनिषत् ॥ अथर्ववेदमध्ये तु शाखा मुख्यतमा हि षट् । स्वयंभुवा याः कथिताः पुत्रायाथर्वणं प्रति ॥ १ ॥ तासु गुह्योपनिषदस्तिष्ठन्ति वरवर्णिनि । नामानि शृणु शाखानां तत्राद्या वारतन्तवी ॥ २ ॥ मौञ्जायनी द्वितीया तु तृतीया तार्णवैन्दवी । चतुर्थी शौनकी प्रोक्ता पञ्चमी पैप्पलादिका ॥ ३ ॥… Read More


अर्जुन बने अर्जुनी- निकुञ्ज लीला एक समय यमुनाजी के तट पर किसी वृक्ष के नीचे भगवान् देवकीनन्दन के पार्षद अर्जुन बैठे थे, उन्होंने कथाप्रसंग में ही भगवान् से प्रश्न किया — हे दयासागर प्रभो ! श्रीशिव तथा ब्रह्माजी आदि ने भी आपके जिस रहस्य का दर्शन अथवा श्रवण न किया हो, उसी का मुझसे वर्णन… Read More


॥ राधाकृष्ण उपासनायां विविध न्यासाः ॥ राधाकृष्ण की उपासना में दुर्गा व दशमहाविद्याओं की तरह प्रणव, मातृका,नक्षत्रादि न्यास करने चाहिये । केशव एवं श्रीकण्ठादि न्यास तथा निम्न न्यास दैनिक पूजन समय अपने शरीर में करे अथवा पर्वादि के दिन करे । मूर्ति प्रतिष्ठा में भी ये न्यास देवमूर्ति में करने चाहिये । ॥ प्रणव न्यास… Read More


ब्रह्मर्षि श्रीश्री सत्यदेव — एक विलक्षण विभूति इस धरती पर समय-समय पर अनेक ऐसी विभूतियाँ प्रकट हुई हैं, जिन्होंने मानवमात्र के कल्याण एवं अभ्युदयहेतु ही मनुष्य-शरीर धारण किया । ऐसी ही एक उच्चकोटि की आध्यात्मिक विभूति थे, ब्रह्मर्षि श्रीश्री सत्यदेव । बंगाल के बारीशाल (इस समय बांग्लादेश में) नामक स्थान में शाक्त परम्परा के एक… Read More


भक्त गोस्वामी रघुनाथदास श्रीरघुनाथदास का जन्म आज से लगभग चार सौ वर्ष पूर्वबंगाल में तीस बीघा के पास पहले एक सप्‍तग्राम नामक महासमृद्धि शाली प्रसिद्ध नगर था। इस नगर में हिरण्‍यदास और गोवर्धनदास- ये दो प्रसिद्ध धनी महाजन रहते थे। दोनों भाई-भाई ही थे। ये लोग गौड़ के तत्‍कालीन अधिपति सैयद हुसैनशाह का ठेके पर… Read More


शिवजी का राधावतार एक बार परमकौतुकी लीलामय भगवान् श्रीशिवजी ने पार्वतीजी से कहा — ‘देवि ! यदि मुझपर तुम प्रसन्न हो तो तुम पृथिवीतल पर कहीं पुरुषरूप से अवतार लो और मैं स्त्रीरूप धारण करूँगा । यहाँ जैसे मैं तुम्हारा प्रियतम स्वामी और तुम मेरी प्राणप्यारी भार्या हो, उसी प्रकार वहाँ तुम मेरे स्वामी तथा… Read More


महापुरुषों के अपमान से विपत्ति प्राचीनकाल की बात है, दम्भोद्भव नाम का एक सार्वभौम राजा था। वह महारथी सम्राट् नित्यप्रति प्रात:काल उठकर ब्राह्मण और क्षत्रियों से पूछा करता था कि ‘क्या ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों में कोई ऐसा शस्त्रधारी है, जो युद्ध में मेरे समान अथवा मुझसे बढ़कर हो ?’ इस प्रकार कहते हुए… Read More


दारुब्रह्म (भगवान् जगन्नाथ )-का प्राकट्य-रहस्य एक समय श्रीधाम द्वारका में भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र रात्रिकाल में श्रीरुक्मिणी, सत्यभामा प्रभृति प्रधान अष्ट-राजमहिषियों के मध्य शयन कर रहे थे । स्वप्नावस्था में आप अकस्मात् ‘हा राधे! हा राधे !’ उच्चारण करते हुए क्रन्दन करने लगे । जब अन्य किसी प्रकार प्रभु का क्रन्दन नहीं रुका, तब बाध्य होकर महारानी… Read More


॥ अथर्ववेदीया श्रीराधिकातापनीयोपनिषत् ॥ [ श्रुतियों द्वारा श्रीराधिकाजी की अपरिमित महिमा की प्रतिपादक स्तुति] “ब्रह्मवादिनो वदन्ति, कस्माद्राधिकामुपासते आदित्योऽभ्यद्रवत् ॥ १ ॥ श्रुतय ऊचुः— सर्वाणि राधिकाया दैवतानि सर्वाणि भूतानि राधिकायास्तां नमामः ॥ २ ॥ देवतायतनानि कम्पन्ते राधाया हसन्ति नृत्यन्ति च सर्वाणि राधादैवतानि । सर्वपापक्षयायेति व्याहृतिभिर्हुत्वाथ राधिकायै नमामः ॥ ३ ॥ भासा यस्याः कृष्णदेहोऽपि गौरो जायते देवस्येन्द्रनीलप्रभस्य… Read More