ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 36 ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 36 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ छत्तीसवाँ अध्याय इन्द्र को दुर्वासा के शाप का वर्णन नारदजी ने पूछा — भगवन् ! श्रीमहालक्ष्मी भगवान् नारायण की प्रिया होकर सदा वैकुण्ठ में विराजती हैं। उन सनातनीदेवी को वैकुण्ठ की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। फिर वे देवी… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 35 ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 35 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ पैंतीसवाँ अध्याय भगवती महालक्ष्मी के प्राकट्य तथा विभिन्न व्यक्तियों से उनके पूजित होने का वर्णन नारदजी ने कहा — भगवन्! मैं धर्मराज और सावित्री के संवाद में निर्गुण-निराकार परमात्मा श्रीकृष्ण का निर्मल यश सुन चुका । वास्तव में उनके… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 34 ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 34 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ चौंतीसवाँ अध्याय भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरूप, महत्त्व और गुणों की अनिर्वचनीयता सावित्री ने कहा — देव! अब आप मुझे सारभूत एवं परम दुर्लभ हरिभक्ति का उपदेश दीजिये । अन्य सब बातें मैंने आपसे सुन ली हैं । इस समय… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 33 ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 33 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ तैंतीसवाँ अध्याय छियासी प्रकार के नरक-कुण्डों का विशद परिचय धर्मराज बोले — सतीशिरोमणे! सभी नरककुण्ड पूर्ण चन्द्रमण्डल की भाँति गोलाकार हैं । वे गहरे भी बहुत हैं । उनमें अनेक प्रकार के पत्थर जड़े गये हैं । प्रलयकाल तक… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 32 ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 32 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ बत्तीसवाँ अध्याय पञ्चदेवोपासकों के नरक में न जाने का कथन सावित्री ने कहा — महाभाग धर्मराज ! आप वेद एवं वेदाङ्ग के पारगामी विद्वान् हैं। जो सबका सारभूत, अभीष्ट, सर्व-सम्मत, कर्म का उच्छेद करने में कारणभूत, परम श्रेष्ठ, मनुष्यों… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 31 ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 31 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ इकतीसवाँ अध्याय नरक-कुण्डों और उनमें जाने वाले पापियों तथा पापों का वर्णन यम बोले — साध्वि ! जो द्विज पुंश्चली और वेश्या का अन्न खाता तथा उसके साथ गमन करता है, वह मरने के पश्चात् कालसूत्र नामक नरक में… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 30 ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 30 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ तीसवाँ अध्याय नरक-कुण्डों और उनमें जाने वाले पापियों तथा पापों का वर्णन धर्मराज ने कहा — साध्वि ! भगवान् श्रीहरि की सेवामें संलग्न रहने वाले पुण्यात्मा, योगी, सिद्ध, व्रती, तपस्वी और ब्रह्मचारी पुरुष नरक में नहीं जाते, यह ध्रुव… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 29 ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 29 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ उनतीसवाँ अध्याय नरक-कुण्डों और उनमें जाने वाले पापियों तथा पापों का वर्णन भगवान् नारायण कहते हैं — नारद! रविनन्दन धर्मराज ने सावित्री को विधिपूर्वक विष्णु का महामन्त्र देकर ‘अशुभकर्म का विपाक’ कहना आरम्भ किया। धर्मराज ने कहा- —पतिव्रते !… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 28 ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 28 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ अट्ठाइसवाँ अध्याय सावित्री-धर्मराज के प्रश्नोत्तर तथा सावित्री के द्वारा धर्मराज को प्रणाम-निवेदन भगवान् नारायण कहते हैं — नारद! धर्मराज के मुख से उपर्युक्त वर्णन सुनकर सावित्री की आँखों में आनन्द के आँसू छलक पड़े। उसका शरीर पुलकायमान हो गया।… Read More
ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 27 ब्रह्मवैवर्तपुराण – प्रकृतिखण्ड – अध्याय 27 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ सताईसवाँ अध्याय सावित्री – धर्मराज के प्रश्नोत्तर सावित्री ने कहा — धर्मराज! जिस कर्म के प्रभाव से पुण्यात्मा मनुष्य स्वर्ग अथवा अन्य लोक में जाते हैं, वह मुझे बताने की कृपा करें । धर्मराज बोले — पतिव्रते ! ब्राह्मण… Read More