July 5, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 235 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ दो सौ पैंतीसवाँ अध्याय राजा की नित्यचर्या प्रात्यहिकराजकर्म पुष्कर कहते हैं — परशुरामजी ! अब निरन्तर किये जाने योग्य कर्म का वर्णन करता हूँ, जिसका प्रतिदिन आचरण करना उचित है। जब दो घड़ी रात बाकी रहे तो राजा नाना प्रकार के वाद्यों, बन्दीजनों द्वारा की हुई स्तुतियों तथा मङ्गल-गीतों की ध्वनि सुनकर निद्रा का परित्याग करे। तत्पश्चात् गूढ़ पुरुषों (गुप्तचरों) से मिले। वे गुप्तचर ऐसे हों, जिन्हें कोई भी यह न जान सके कि ये राजा के ही कर्मचारी हैं। इसके बाद विधिपूर्वक आय और व्यय का हिसाब सुने। फिर शौच आदि से निवृत्त होकर राजा स्नानगृह में प्रवेश करे। वहाँ नरेश को पहले दन्तधावन (दाँतुन) करके फिर स्नान करना चाहिये। तत्पश्चात् संध्योपासना करके भगवान् वासुदेव का पूजन करना उचित है। तदनन्तर राजा पवित्रतापूर्वक अग्रि में आहुति दे; फिर जल लेकर पितरों का तर्पण करे। इसके बाद ब्राह्मणों का आशीर्वाद सुनते हुए उन्हें सुवर्णसहित दूध देनेवाली गौ दान दे ॥ १-५ ॥ ‘ इन सब कार्यों से अवकाश पाकर चन्दन और आभूषण धारण करे तथा दर्पण में अपना मुँह देखे । साथ ही सुवर्णयुक्त घृत में भी मुँह देखे। फिर दैनिक-कथा आदि का श्रवण करे। तदनन्तर वैद्य की बतायी हुई दवा का सेवन करके माङ्गलिक वस्तुओं का स्पर्श करे। फिर गुरु के पास जाकर उनका दर्शन करे और उनका आशीर्वाद लेकर राजसभा में प्रवेश करे ॥ ६-७ ॥ महाभाग ! सभा में विराजमान होकर राजा ब्राह्मणों, अमात्यों तथा मन्त्रियों से मिले। साथ ही द्वारपाल ने जिनके आने की सूचना दी हो, उन प्रजाओं को भी बुलाकर उन्हें दर्शन दे; उनसे मिले। फिर इतिहास का श्रवण करके राज्य का कार्य देखे। नाना प्रकार के कार्यों में जो कार्य अत्यन्त आवश्यक हो, उसका निश्चय करे। तत्पश्चात् प्रजा के मामले मुकद्दमों को देखे और मन्त्रियों के साथ गुप्त परामर्श करे । मन्त्रणा न तो एक के साथ करे, न अधिक मनुष्यों के साथ; न मूखों के साथ और न अविश्वसनीय पुरुषों के साथ ही करे। उसे सदा गुप्तरूप से ही करे; दूसरों पर प्रकट न होने दे। मन्त्रणा को अच्छी तरह छिपाकर रखे, जिससे राज्य में कोई बाधा न पहुँचे। यदि राजा अपनी आकृति को परिवर्तित न होने दे — सदा एक रूप में रहे तो यह गुप्त मन्त्रणा की रक्षा का सबसे बड़ा उपाय माना गया है; क्योंकि बुद्धिमान् विद्वान् पुरुष आकार और चेष्टाएँ देखकर ही गुप्तमन्त्रणा का पता लगा लेते हैं। राजा को उचित है कि वह ज्योतिषियों, वैद्यों और मन्त्रियों की बात माने। इससे वह ऐश्वर्य को प्राप्त करता है; क्योंकि ये लोग राजा को अनुचित कार्यों से रोकते और हितकर कामों में लगाते हैं ॥ ८-१२ ॥ मन्त्रणा करने के पश्चात् राजा को रथ आदि वाहनों के हाँकने और शस्त्र चलाने का अभ्यास करते हुए कुछ काल तक व्यायाम करना चाहिये। युद्ध आदि के अवसरों पर वह स्नान करके भलीभाँति पूजित हुए भगवान् विष्णु का, हवन के पश्चात् प्रज्वलित हुए अग्रिदेव का तथा दान-मान आदि से सत्कृत ब्राह्मणों का दर्शन करे। दान आदि के पश्चात् वस्त्राभूषणों से विभूषित होकर राजा भलीभाँति जाँचे-बूझे हुए अन्न का भोजन करे। भोजन के अनन्तर पान खाकर बायीं करवट से थोड़ी देर तक लेटे । प्रतिदिन शास्त्रों का चिन्तन और योद्धाओं, अन्न- भण्डार तथा शस्त्रागार का निरीक्षण करे। दिन के अन्त में सायं संध्या करके अन्य कार्यों का विचार करे और आवश्यक कामों पर गुप्तचरों को भेजकर रात्रि में भोजन के पश्चात् अन्तःपुर में जाकर रहे। वहाँ संगीत और वाद्यों से मनोरञ्जन करके सो जाय तथा दूसरों के द्वारा आत्मरक्षा का पूरा प्रबन्ध रखे। राजा को प्रतिदिन ऐसा ही करना चाहिये ॥ १३–१७ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराण में ‘प्रात्यहिक राजकर्म का कथन’ नामक दो सौ पैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २३५ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe