भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ६७
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय ६७
रोहिणीचन्द्र-व्रत का विधान

महाराज युधिष्ठिर ने पूछा — भगवन् ! वर्षाकाल में आकाश नीले मेघ से आच्छादित हो जाता है । मोर चारों ओर मीठी-मीठी बोली बोलने लगते हैं । मेढकों की ध्वनि भी बड़ी सुहावनी लगती है, इस समय कुलीन स्त्रियाँ किसको अर्घ्य दें तथा कौन-सा सत्कर्म करें और वे किस तिथि में कौन-सा व्रत करें ? आप इसका वर्णन करें ।
om, ॐ
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा — महाराज ! श्रेष्ठ स्त्रियों को इस समय रोहिणीचन्द्र-व्रत का पालन करना चाहिये । श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पवित्र होकर सर्वौषधिमिश्रित जल से स्नान करे, अनन्तर उड़द के आटे की एक सौ इन्दुरिका और पाँच घृत-मोदक बनाये । सभी सामग्रियों को लेकर उत्तम जलाशय पर जाय और उसके तट पर गोबर से मण्डली रचना करे, उसमें रोहिणी के साथ चन्द्रमा को अङ्कित कर गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य आदि से उनकी अर्चना करे और इस प्रकार उनकी प्रार्थना करे —

“सोमराज नमस्तुभ्यं रोहिण्यै ते नमो नमः ।
महासति महादेवि सम्पादय ममेप्सितम् ॥”
(उत्तरपर्व ६७ । ८)

अनन्तर ‘सोमो मे प्रीयताम्’ तथा ‘देवी रोहिणी मे प्रीयताम्’ ऐसा कहते हुए पूजन-द्रव्य ब्राहाण के लिये निवेदित कर दे । अनन्तर कमर तक जल में उतरकर मन में रोहिणी सहित चन्द्रमा को ध्यान करते हुए उन इन्दुरिकाओं का भक्षण कर ले । अनन्तर जल से बाहर आकर ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा दे । प्रतिवर्ष इस विधि से जो स्त्री अथवा पुरुष भक्तिपूर्वक व्रत करता है, वह धन-धान्य, पुत्र-पौत्रादि से परिपूर्ण होकर बहुत दिनों तक सुख भोगकर तीर्थ-स्थान में मृत्यु को प्राप्त करता है और ब्रह्मलोक को जाता है, अनन्तर विष्णुलोक, तदनन्तर शिवलोक में जाता है ।

(अध्याय ६७)

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