भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८३ से १८४
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – १८३ से १८४
श्राद्ध के विविध भेद तथा वैश्वदेव-कर्म की महिमा

भगवान् सूर्य ने अनूरु (अरुण) — से कहा — अरुण ! द्विजमात्र को विधिपूर्वक पञ्च-महायज्ञ— भूतयज्ञ, पितृयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ, दैवयज्ञ और मनुष्ययज्ञ करना चाहिये ।

बलिवैश्वदेव करना भूतयज्ञ, तर्पण करना पितृयज्ञ, वेद का अध्ययन और अध्यापन करना ब्रह्मयज्ञ, हवन करना देवयज्ञ तथा घर पर आये हुए अतिथि को सत्कारपूर्वक भोजन आदि से संतुष्ट करना मनुष्ययज्ञ कहा जाता है ।om, ॐश्राद्ध बारह प्रकार के होते हैं — नित्य-श्राद्ध, नैमित्तिक-श्राद्ध, काम्य-श्राद्ध, वृद्धि-श्राद्ध, सपिण्डन-श्राद्ध, पार्वण-श्राद्ध, गोष्ठ-श्राद्ध, शुद्धि-श्राद्ध, कर्माङ्ग-श्राद्ध, दैविक-श्राद्ध, औपचारिक श्राद्ध तथा सांवत्सरिक-श्राद्ध । तिल, व्रीहि (धान्य), जल, दूध, फल, मूल, शाक आदिसे पितरों की संतुष्टि के लिये प्रतिदिन श्राद्ध करना चाहिये । जो श्राद्ध प्रतिदिन किया जाता है, वह नित्य-श्राद्ध है । एकोद्दिष्ट-श्राद्ध को नैमितिक-श्राद्ध कहते हैं । इस श्राद्ध को विधिपूर्वक सम्पन्न कर अयुग्म (विषम संख्या) ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिये । जो श्राद्ध कामना-परक किया जाता है, वह काम्य-श्राद्ध है । इसे पार्वग-श्राद्ध की विधि से करना चाहिये । वृद्धि के लिये जो श्राद्ध किया जाता है, उसे वृद्धि-श्राद्ध कहते हैं । ये सभी श्राद्ध-कर्म पूर्वाह्ण-काल में उपवीती (जिसका यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका हो। जिसने जनेऊ पहना हो।) होकर करने चाहिये । सपिण्डन-श्राद्ध में चार पात्र बनाने चाहिये । उनमें गन्ध, जल और तिल छोड़ना चाहिये । प्रेतपात्र का जल पितृ-पात्र में छोड़े । इसके लिये ‘ये समानाः० ‘ (यजु० १९ । ४५-४६) मन्त्रों का पाठ करना चाहिये । स्त्री का भी एकोद्दिष्ट-श्राद्ध करना चाहिये । अमावास्या तथा किसी पर्व पर जो श्राद्ध किया जाता है, उसे पार्वण-श्राद्ध कहते हैं । गौओं के लिये किया जानेवाला श्राद्ध-कर्म गोष्ठ-श्राद्ध कहा जाता है । पितरों की तृप्ति के लिये, सम्पत्ति और सुख की प्राप्ति-हेतु तथा विद्वानों की संतुष्टि के निमित्त जो ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है, वह शुद्ध्यर्थ-श्राद्ध है । गर्भाधान, सीमन्तोन्नयन तथा पुंसवन-संस्कारों के समय किया गया श्राद्ध कर्माङ्ग-श्राद्ध है । यात्रा आदि के दिन देवता के उद्देश्य से घी के द्वारा किया गया हवनादि कार्य दैविक श्राद्ध कहलाता है । शरीर की वृद्धि, शरीर की पुष्टि तथा अश्ववृद्धि के निमित्त किया गया श्राद्ध औपचारिक-श्राद्ध कहलाता है । सभी श्राद्ध में सांवत्सरिक-श्राद्ध सबसे श्रेष्ठ है । इसे मृत व्यक्ति की तिथि पर करना चाहिये । जो व्यक्ति सांवत्सरिक-श्राद्ध नहीं करता, उसकी पूजा न मैं ग्रहण करता हूँ, न विष्णु, ब्रह्मा, रुद्र एवं अन्य देवगण ही ग्रहण करते हैं । इसलिये प्रयत्नपूर्वक प्रत्येक वर्ष मृत व्यक्ति की तिथि पर सांवत्सरिक श्राद्ध करना चाहिये । जो व्यक्ति माता-पिता का वार्षिक श्राद्ध नहीं करता, वह घोर ‘तामिस्र’ नामक नरक को प्राप्त करता है और अन्त में सूकर-योनि में उत्पन्न होता हैं ।अरुण ने पूछा — भगवन् ! जो व्यक्ति माता-पिता की मृत्यु को तिथि, मास और पक्ष को नहीं जानता, उस व्यक्ति को किस दिन श्राद्ध करना चाहिये ? जिससे वह नरकभागी न हो ?

भगवान् आदित्य ने कहा — पक्षिराज अरुण ! जो व्यक्ति माता-पिता के मृत्यु के दिन, मास और पक्ष को नहीं जानता, उस व्यक्ति को अमावास्या के दिन सांवत्सरिक नामक श्राद्ध करना चाहिये । जो व्यक्ति मार्गशीर्ष और माघ में पितरों के उद्देश्य से विशिष्ट भोजनादि द्वारा मेरी पूजा-अर्चना करता है, उसपर मैं अति प्रसन्न होता हूँ और उसके पितर भी संतुष्ट हो जाते हैं । पितर, गौ तथा ब्राह्मण — ये मेरे अत्यन्त इष्ट हैं । अतः विशेष भक्तिपूर्वक इनकी पूजा करनी चाहिये ।वेद-विक्रय द्वारा और स्त्री द्वारा प्राप्त किया गया धन पितृकार्य और देव-पूजनादि में नहीं लगाना चाहिये । वैश्वदेव कर्म से हीन और भगवान् आदित्य के पूजन से हीन वेदवेत्ता ब्राह्मण को भी निन्द्य समझना चाहिये । जो वैश्वदेव किये बिना ही भोजन कर लेता है वह मूर्ख नरक को प्राप्त करता है, उसका अन्न-पाक व्यर्थ है । प्रिय हो या अप्रिय, मूर्ख हो या विद्वान् वैश्वदेव कर्म के समय आया हुआ व्यक्ति अतिथि होता है और वह अतिथि स्वर्ग का सोपानरूप होता है । जो बिना तिथि का विचार किये ही आता है उसे अतिथि कहते हैं । वैश्वदेवकर्म के समय जो न तो पहले कभी आया हो और न ही उसके पुनः आने की सम्भावना हो तो उस व्यक्ति को अतिथि जानना चाहिये । उसे साक्षात् विश्वेदेव के रूप में ही समझना चाहिये ।
(अध्याय १८३-१८४)

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1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२

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3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४

4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५

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6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७

7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९

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