श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-चतुर्थ स्कन्धः-अध्याय-15 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ पूर्वार्द्ध-चतुर्थ: स्कन्धः-पञ्चदशोऽध्यायः पन्द्रहवाँ अध्याय देवता और दैत्यों के युद्ध में दैत्यों की विजय, इन्द्र द्वारा भगवती की स्तुति, भगवती का प्रकट होकर दैत्यों के पास जाना, प्रह्लाद द्वारा भगवती की स्तुति, देवी के आदेश से दैत्यों का पातालगमन देवीकथनेन दानवानां रसातलं… Read More


श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-चतुर्थ स्कन्धः-अध्याय-14 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ पूर्वार्द्ध-चतुर्थ: स्कन्धः-चतुर्दशोऽध्यायः चौदहवाँ अध्याय शुक्राचार्य द्वारा दैत्यों को बृहस्पति का पाखण्डपूर्ण कृत्य बताना, बृहस्पति की माया से मोहित दैत्यों का उन्हें फटकारना, क्रुद्ध शुक्राचार्य का दैत्यों को शाप देना, बृहस्पति का अन्तर्धान हो जाना, प्रह्लाद का शुक्राचार्यजी से क्षमा माँगना और… Read More


श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-चतुर्थ स्कन्धः-अध्याय-13 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ पूर्वार्द्ध-चतुर्थ: स्कन्धः-त्रयोदशोऽध्यायः तेरहवाँ अध्याय शुक्राचार्यरूपधारी बृहस्पति का दैत्यों को उपदेश देना शुक्ररूपेण गुरुणा दैत्यवञ्चनावर्णनम् राजा बोले — [ हे व्यासजी !] तत्पश्चात् शुक्राचार्य का रूप धारण करने वाले बुद्धिमान् गुरु बृहस्पति ने छलपूर्वक दैत्यों का पुरोहित बनकर क्या किया ? ॥… Read More


श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-चतुर्थ स्कन्धः-अध्याय-12 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ पूर्वार्द्ध-चतुर्थ: स्कन्धः-द्वादशोऽध्यायः बारहवाँ अध्याय महात्मा भृगु द्वारा विष्णु को मानवयोनि में जन्म लेने का शाप देना, इन्द्र द्वारा अपनी पुत्री जयन्ती को शुक्राचार्य के लिये अर्पित करना, देवगुरु बृहस्पति द्वारा शुक्राचार्य का रूप धारणकर दैत्यों का पुरोहित बनना जयन्त्या शुक्रसहवासवर्णनम् व्यासजी… Read More


श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-चतुर्थ स्कन्धः-अध्याय-11 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ पूर्वार्द्ध-चतुर्थ: स्कन्धः-एकादशोऽध्यायः ग्यारहवाँ अध्याय मन्त्रविद्या की प्राप्ति के लिये शुक्राचार्य का तपस्यारत होना, देवताओं द्वारा दैत्यों पर आक्रमण, शुक्राचार्य की माता द्वारा दैत्यों की रक्षा और इन्द्र तथा विष्णु को संज्ञाशून्य कर देना, विष्णु द्वारा शुक्रमाता का वध शुक्रमातुर्वधवर्णनम् व्यासजी बोले… Read More


श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-चतुर्थ स्कन्धः-अध्याय-10 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ पूर्वार्द्ध-चतुर्थ: स्कन्धः-दशमोऽध्यायः दसवाँ अध्याय राजा जनमेजय द्वारा प्रह्लाद के साथ नर-नारायण के युद्ध का कारण पूछना, व्यासजी द्वारा उत्तर में संसार के मूल कारण अहंकार का निरूपण करना तथा महर्षि भृगु द्वारा भगवान् विष्णु को शाप देने की कथा भृगुशापकारणवर्णनम् जनमेजय… Read More


श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-चतुर्थ स्कन्धः-अध्याय-09 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ पूर्वार्द्ध-चतुर्थ: स्कन्धः-नवमोऽध्यायः नौवाँ अध्याय प्रह्लादजी का तीर्थयात्रा के क्रम में नैमिषारण्य पहुँचना और वहाँ नर-नारायण से उनका घोर युद्ध, भगवान् विष्णु का आगमन और उनके द्वारा प्रह्लाद को नर-नारायण का परिचय देना प्रह्लादनारायणयोर्युद्धे विष्णोरागमनवर्णनम् व्यासजी बोले — [ हे राजन् !… Read More


श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-चतुर्थ स्कन्धः-अध्याय-08 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ पूर्वार्द्ध-चतुर्थ: स्कन्धः-अष्टमोऽध्यायः आठवाँ अध्याय व्यासजी द्वारा राजा जनमेजय को प्रह्लाद की कथा सुनाना और इस प्रसंग में च्यवन ऋषि के पाताललोक जाने का वर्णन प्रह्लादतीर्थयात्रावर्णनम् सूतजी बोले — परीक्षित्-पुत्र राजा जनमेजय के यह पूछने पर सत्यवतीसुत विप्र व्यासजी ने विस्तारपूर्वक सारा… Read More


श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-चतुर्थ स्कन्धः-अध्याय-07 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ पूर्वार्द्ध-चतुर्थ: स्कन्धः-सप्तमोऽध्यायः सातवाँ अध्याय अप्सराओं के प्रस्ताव से नारायण के मन में ऊहापोह और नर का उन्हें समझाना तथा अहंकार के कारण प्रह्लाद के साथ हुए युद्ध का स्मरण कराना अहङ्कारावर्तनवर्णनम् व्यासजी बोले — उन देवांगनाओं का वचन सुनकर धर्मपुत्र प्रतापी… Read More


श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-चतुर्थ स्कन्धः-अध्याय-06 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ पूर्वार्द्ध-चतुर्थ: स्कन्धः-षष्ठोऽध्यायः छठा अध्याय कामदेव द्वारा नर-नारायण के समीप वसन्त ऋतु की सृष्टि, नारायण द्वारा उर्वशी की उत्पत्ति, अप्सराओं द्वारा नारायण से स्वयं को अंगीकार करने की प्रार्थना अप्सरां नारायणसमीपे प्रार्थनाकरणम् व्यासजी बोले — सर्वप्रथम उस पर्वत श्रेष्ठ गन्धमादन पर वसन्त… Read More